पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१५२

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काव्य में रहस्यवाद। १४५, इधर हिन्दी में कभी-कभी रहस्यवाद के सम्बन्ध में जो लेख निकलने लगे हैं उनमे से वहुतो में एक साथ बहुत से नामों की उद्धरणी-जैसे, वर्ड्सवर्थ, शेली, कालरिज, ब्राउनिंग यहाँ तक कि कीट्स ( Keats ) भी मिलती है । इनमे वर्डसवर्थ तो प्रकृति के सच्चे उपासक थे। वे प्रकाश या अभिव्यक्ति को लेकर चले थे । उनका ‘रहस्यवाद’ से कोई सम्बन्ध नहीं । प्राकृतिक दृश्यों के प्रति जैसी सच्ची भावुकता उनकी थी, अँगरेजी के पिछले कवियों में किसी की न थी। एक छोटी सी कविता मे उन्होने इस बात पर बहुत खेद प्रकट किया है कि ऐसे मधुर और प्रिय रूपो कों नित्य प्रति सामने पाकर भी अब लोगो के हृदय उनकी ओर आकर्षित नहीं होते । उन्होने यहाँ तक कहा है कि इससे अच्छा तो यह था कि हम लोग ईसाई न होकर पुराने मूर्ति-पूजक ही रहते और प्रकृति के नाना रूपो के साथ अपने हृदय के योग का अनुभव करते ।' उनका प्रकृति-प्रेम कुतूहल, विस्मय और सुख-विलास की मनोवृत्ति से सम्बद्ध न था । अलौकिक, असामान्य, अद्भुत और भव्य चमत्कार हुँढ़नेवाले ने थे। नित्यप्रति सामने आनेवाले चिरपरिचित सीधे-सादे सामान्य दृश्यों के प्रति अपने सच्चे अनुराग की व्यञ्जना जैसी वर्डसवर्थ ने की हैं, और जगह नहीं मिलती। • जो एक पुरानी गढ़ी के आसपास लगे पेड़ो के झुरमुट के कटवाने पर दुखी होता है, ऐसे सच्चे प्रकृति-प्रेमी कवि को ‘रहस्यवादी कहना उसकी अप्रतिष्ठा करना है । “एक पथिक को शिक्षा (Adinoni tion to a Traveller ) Ara veti atat कविता में वर्डसवर्थ ने एक नागरिक पथिक को किसी ग्राम में छोटे से नाले के तट पर, थोड़ी सी गोचारण भूमि के बीच खड़े एक छोटे से झोपड़े को ललचती ऑखों से देखते देखकर कहा है उस घर का लालच न कर। बहुत से तेरे ऐसे लोग इसी तरह