पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१३६

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काव्य में रहस्यवाद १२६ विशेष प्रकार का रखेगा । उसमें कुछ अलौकिकता, अस्वाभाविकता, देश-काल को अतिक्रम, अनुभूति की विचित्रता--जो बिल्कुल झूठी होगी–लाने का भरपूर प्रयत्न करेगा । बातचीत में वह इस प्रयत्न तक को अस्वीकार करेगा ; कहेगा कि सब भावना इसी रूप में परोक्ष जगत् से आकर मेरे हृदय में जबरदस्ती घुस गई है। पर वास्तव में इसकी प्रतीति उत्पन्न करने के लिए भी कि भावना इसी रूप में एकबारगी आई है, उसे पूरा श्रम करना पड़ता है, जैसा कि घोर रहस्यचादी कवि ईट्स ( eats ) तक ने कहा है ।* हमारे हृदय का सीधा लगाव गोचर जगत् से है। इस बात के आधार पर सारे संसार में रस-पद्धति चली है और सच्चे स्वाभाविक रूप में चल सकती है । मजहबी सुबीते के लिए अनुभूति के स्वाभा|विक क्रम का विपर्यय करने से मूल आलम्बनो को छाया और छाया को मूल आलम्बन बनाने से--कला के क्षेत्र में कितना आडम्बर खड़ा हुआ है, इसका अंदाजा ऊपर के ब्योरे से लग सकता है। | कल्पना की यह लोकोत्तर व्याख्या ब्लेक की अपनी उपज नहीं थी, यह हम पहले कह आए हैं। यह उसने सूफियों से ज्यो की त्यों | ली थी । शाहजहाँ के पुत्र दाराशिकोह ने सूफियो के सिद्धान्त पर जो एक छोटी सी पुस्तक ( रिसालए हनुमा) सङ्कलित की थी उसमें साफ यही बात लिखी है। देखिए----


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  • I said "A line will take us hours may be, Yet if it does not seem a moment's thought, Our stitching and unstitching has been naught"

ईटस ने इस बात का खंडन जोर के साथ किया है कि कवियों में भावना एक मारगी आती जाती है और वे लिखते जाते हैं। स्वयं ईट्स अपनी कविताओं की बहुत काँट छॉट किया करते हैं। यहाँ तक कि दूसरे संस्करण में उनकी बहुत-सी कविताएँ बदली हुई सित्ती है।