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चिन्तामणि

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१०० चिन्तामणि यक होता है । रामायण, भागवत आदि की कथा सुनकर लौटे हुए लोगों के हृदयो पर भावी का कुछ प्रभाव कुछ काल तक रहता है । खेद है कि हृदय के व्यायाम और परिष्कार के लिए जो संस्थाएँ हमारे समाज में प्रतिष्ठित था उनकी ओर से हम उदासीन हो रहे हैं ।। | मुक्तक कविताओं में इस प्रकार मग्न करनेवाली रसधारा नही चलती ; छीटे उछलते है। उनका प्रभाव क्षणिक, अतः अधिकतर मनोरञ्जन या दिलबहलाव के रूप में, होता है। राजाओं की सभा में जाकर जब से कवि लोग उनके मनबहलाव का काम करने लगे तत्र से हमारे सान्त्यि भे उक्ति-वैचित्र्यपूर्ण मुक्तकों का प्रचार चढ़ने लगा । भोज ऐसे राजाओं के सामने बात बनानेवाले पद्यकार बातो की फुलझड़ी छोड़कर लाखो रुपये पाने लगे । जव क्षणिक मनोरञ्जन या दिलबहलाव मात्र उद्देश्य रह गया तब कुछ अधिक कुतूहल-बर्द्धक सामग्री अपेक्षित हुई । फारस की महफिली शायरी को खा ढंग यहाँ की कविता ने भी पकड़ा। पर फारस की शायरी अत्युक्तिपूर्ण होने पर भी संवेदनात्मक रही ; उसमे भाव-पक्ष की प्रधानता रहीं । किन्तु यहाँ बाहरी आडम्बरो की अधिकता हुई ; हृदय-पक्ष चहुत कुछ व गया । फुडकल कविता अधिकतर सृक्ति के रूप में आ गई। इसी सम्बन्ध में लगे हाथ यह भी विचार कर लेना चाहिए कि रीति, लक्षण, अलङ्कार आदि काव्य से किस रूप में सहायक हो सकते हैं और किस रूप में बाधक । पहली बात तो ध्यान देने की यह है कि लक्षण-ग्रन्थों के बनने के बहुत पहले से कविता होती आ रही थी। उन्हीं कविताओं को लक्ष्य करके लक्षण वनाए गए। इससे स्पष्ट है कि काव्य की रचना उन पर अवलम्बित नही । ये लक्षण आदि वास्तव में काव्यचर्चा की सुगमता के लिए वने । पर वहुत सी काव्य-रचना हमारे यहाँ इन्ही लक्षणों के भीतर आ जाने को ही सब कुछ मानकर होने लगी। कुछ सजीवता न रहने पर