यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१७८
चिन्तामणि

गोचर और मूर्त्त रूपों के द्वारा ही अपनी बात कहता है। उदाहरण के लिए गोस्वामी तुलसीदासजी के ये वचन लीजिए—

जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तब कृपापात्र जन जागै।

इसमें माया में पड़े हुए जीव की अज्ञानदशा का काव्य-पद्धति पर कथन है। और देखिये। प्राणी आयु भर क्लेश-निवारण और सुखप्राप्ति का प्रयास करता रह जाता है और कभी वास्तविक सुख-शान्ति प्राप्त नहीं करता, इस बात को गोस्वामीजी यों सामने रखते हैं—

डासत ही गई बीति निसा सब,
कबहुँ न नाथ! नींद भरि सोयो।

भविष्य का ज्ञान अत्यन्त अद्भुत और रहस्यमय है जिसके कारण प्राणी आनेवाली विपत्ति की कुछ भी भावना न करके अपनी दशा में मग्न रहता है। इस बात को गोस्वामीजी ने "चरै हरित तृन बलिपशु" इस चित्र द्वारा व्यक्त किया है। अँगरेज़ कवि पोप ने भी भविष्य के अज्ञान का यही मार्मिक चित्र लिया है, यद्यपि उसने इस अज्ञान को ईश्वर का बड़ा भारी अनुग्रह कहा है—

उस बलिपशु को देख आज जिसका तू, रे नर?
अपने रँग में रक्त बहाएगा वेदी पर।
होता उसको ज्ञान कहीं तेरा है जैसा,
क्रीड़ा करता कभी उछलता फिरता ऐसा?
अन्तकाल तक हरा-हरा चारा चभलाता।
हनन हेतु उसे उठे हाथ को चाटे जाता।
आगम का अज्ञ न ईश का परम अनुग्रह॥

[१]


  1. The lamp thy riot dooms to bleed to day,
    Had he the reason, would he skip and play,
    Pleased to the last be crops the flaw, ry food
    And licks the hand just raised to shed his blood,
    The blindness to the future kindly given.

    Essay on Man.