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करने की प्रतिज्ञा करके बाहर निकल पडे़ और चन्द्रगुप्त से मिलकर उसे कौशल से नन्द-राज्य का स्वामी बना दिया।

बौद्ध लोग उन्हे तक्षशिला-निवासी ब्राह्मण बतलाते हैं और कहते हैं कि धनानन्द को मार कर चाणक्य ही ने चन्द्रगुप्त को राज्य दिया। पुराणों में मिलता है "कौटिल्यो नाम ब्राह्मण समुद्धरिष्यति।" अस्तु। सब की कथाओं का अनुमान करने से जाना जाता हैं कि चाणक्य ही चन्द्रगुप्त की उन्नति के मूल हैं।

कामदकीय नीतिसार में लिखा है―


यस्याभिचारबज्रेण बज्रज्वलनतेजस।
पपात मूलतः श्रीमान्सुपर्वानन्दपर्वत॥
एकाकी मंत्रशक्त्या य शक्त शक्तिधरोपम।
आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम्॥
नीतिशास्त्रामृत धीमानर्थशास्त्रमहोदधे।
य उद्दध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे॥


चन्द्रगुप्त का प्रधान सहायक मंत्री चाणक्य ही था। पर यह ठीक नहीं ज्ञात होता कि वह कहाँ का रहने वाला था। जैनियों के इतिहास से बौद्धों के इतिहास को लोग प्रामाणिक मानते हैं। हेमचन्द्र ने जिस भाव में चाणक्य का चित्र अंकित किया हैं, वह प्रायः अस्वाभाविक घटनाओं से पूर्ण है।

जैन-ग्रन्थों और प्रबन्धों में प्रायः सभी को जैनधर्म में किसी-न-किसी प्रकार आश्रय लेते हुए दिखाया गया है। यही बात चन्द्रगुप्त के सम्बन्ध में भी है। श्रवण बोलगोलावालें लेख के द्वारा जो किसी जैन मुनि का हैं, चन्द्रगुप्त को राज छोड़ कर यति-धर्म ग्रहण करने का प्रमाण दिया जाता है। अनेको ने तो यहाँ तक कह डाला हैं कि उसका साथी चाणक्य भी जैन था।

अर्थशास्त्र के मंगलाचरण का प्रमाण देकर यह कहा जाता हैं कि (नमः शुक्रवृहस्पतिभ्या) ऐसा मंगलाचरण आचार्यों के प्रति कृतज्ञता-