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उस समय समुद्र-तट पर अवस्थित गगरिडीज के प्रसिद्ध नगरो में था।

प्राच्य देश की राजधानी पालीवोया थी, जिसे पाटलीपुत्र कहना असंगत न होगा । मेगास्थनीज लिखता है, कि गगरिडीज की राजधानी पर्थिलीस थी । डाक्टर श्यानवक का मत है कि सम्भवत यह वर्धमान ही था, जिसे ग्रीक लोग पर्थलिस कहते थे। इसमें विवाद करने का अवसर नही है, क्योकि वर्धमान गौड देश के प्राचीन नगरो में हैं और यह राजधानी के योग्य भूमि पर बसा हुआ है ।

केवल नन्द को ही पराजित करने से, चन्द्रगुप्त को एक बड़ा विस्तृत राज्य मिला, जो आसाम से लेकर भारत के मध्यप्रदेश तक व्याप्त था।

अशोक के जीवनीकार लिखते हैं, कि अशोक का राज्य चार प्रादेशिक शासको से शासित होता था । तक्षशिला, पंजाब और अफगानिस्तान की राजधानी थी , टोसाली कलिंग की, अवन्ती मध्यप्रदेश की और स्वर्णगिरि——भारतवर्ष के दक्षिण भाग की राजधानी थी ।* अशोक की जीवनी से ज्ञात होता है कि उसने केवल कलिंग ही विजय किया था। बिन्दुसार के विजयो की गाथा कही भी नही मिलती । मि० स्मिथ ने लिखा है कि It is more probable that the conquest of the south was the work of Bindusar, परन्तु इसका कोई प्रमाण नही है ।

प्रायद्वीप खण्ड को जीतकर चन्द्रगुप्त ने स्वर्णगिरि में उसका शासक रक्खा और सम्भवत यह घटना उस समय की है, जब विजेता सिल्यूकस एक विशाल साम्राज्य की नीव सीरिया-प्रदेश में डाल रहा था । वह घटना ३१६ ई० पू० में हुई ।
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तेन तनयेन सम ययौ । द्वीपान्तर स्नुषाहेतो वणिज्यव्यपदेशत ६८ ।

( कथापीठ लम्बक ५ तरंग )

इससे ज्ञात होता है, कि ताम्नलिप्ति समुद्र-तट पर अवस्थित थी, जहाँ से द्वीपान्तर जाने में लोगो को सुविधा होती थी।

*Vincent A. Smith Life of Ashoka.