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ढुण्ढि के उपोद्घात से एक बात का और पता लगता है कि चन्द्रगुप्त महानन्द का पुत्र नही, किन्तु मौर्य्य सेनापति का पुत्र था। महापद्मादि शूद्रागर्भोद्भव होने पर भी नन्दवंशी कहाये, तब चन्द्रगुप्त मुरा के गर्भ में उत्पन्न होने के कारण नन्दवशी होने से क्यों वचित किया जाता है ? इसलिए मानना पडेगा कि नन्दवश और मौर्य्यवश भिन्न है। मौर्य्यवश अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखता है, जिसका उल्लेख पुराण, वृहत्कथा कामन्दकीइत्यादि में मिलता है और पिछले काल के चित्तौर आदि के शिलालेखोमें भी इसका उल्लेख है। इसी मौर्य्यवश में चन्द्रगुप्त उत्पन्न हुआ ।



चन्द्रगुप्त का वाल्य-जीवन

अर्थकथा, स्पविरावली, कथासरित्सागर और ढुण्ढि के आधार पर चन्द्रगुप्त के जीवन की प्राथमिक घटनाओं का पता चलता है ।

मगध की राजधानी पाटलीपुत्र, गोण और गंगा के सगम पर थी । राजमन्दिर, दुर्ग, लम्बी-चौडी पुण्य-वीथिका, प्रशस्त राजमार्ग इत्यादि राजधानी में किसी उपयोगी वस्तु का अभाव न था । खाँई, सेना, रणतरी इत्यादि से वह सुरक्षित भी थी। उस समय महापद्म को वहाँ राज्य था ।

पुराण में वर्णित अग्विल क्षत्रिय-निधनकारी महापद्म नन्द या काल अशोक के लङको में सब से बडा पुत्र एक नीच स्त्री से उन हुआ था जो मगध छोड़कर किसी अन्य प्रदेश में रहता था। उस समय किसी डाकू से उनसे भेट हो गई और वह अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उन्ही डाकुओं के दल में मिल गया । जब उनका सरदार एकः चढ़ाई में मारा गया, तो वही राजकुमार उन सबो का नेता बन गया और उसने पाटलीपुत्र पर चढ़ाई की । उग्रसेन के नाम से उसने थोङे दिनों के लिए पाटलीपुत्र का अधिकार छीन लिया, इसके बाद उसके आठ भाइयो ने कई वर्ष तक राज्य किया ।

नवे नन्द का नाम घनानन्द था। उगने गगा के घाट बनवाये और उसके प्रवाह को कुछ दिन के लिए हटाकर उसी जगह अपना भारी खजाना