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कुसुमपुर के प्रान्त-भाग में—पथ। चाणक्य और पर्वतेश्वर

चाणक्य—चन्द्रगुप्त कहाँ है?

पर्व॰—सार्थवाह के रूप में युद्ध-व्यवसायिों के साथ आ रहे हैं। शीघ्र ही पहुँच जाने की सम्भावना है।

चाणक्य—और द्वन्द्व में क्या हुआ?

पर्व॰—चन्द्रगुप्त ने बड़ी वीरता से युद्ध किया। समस्त उत्तरापथ में फिलिप्स के मारे जाने पर नया उत्साह फैल गया है। आर्य्य,बहुत-से प्रमुख यवन और आर्य्यगण की उपस्थिति में वह युद्ध हुआ—वह खड्‌ग-परीक्षा देखने योग्य थी! वह वीर-दृश्य अभिनन्दनीय था।

चाणक्य—यवन लोगों के क्या भाव थे?

पर्व॰—सिंहरण अपनी सेना के साथ रंगशाला की रक्षा कर रहा था, कुछ हलचल तो हुई, पर वह पराजय का क्षोभ था। यूडेमिस, जो उसका सहकारी था, अत्यन्त क्रुद्ध हुआ। किसी प्रकार वह ठंडा पड़ा। यूडेमिस सिकन्दर की आज्ञा की प्रतीक्षा में रुका था। अकस्मात्‌ सिकन्दर के मरने का समाचार मिला। यवन लोग अब अपनी ही सोच रहे हैं, चन्द्रगुप्त सिंहरण को वहीं छोड़ कर यहाँ चला आया, क्योंकि आपका आदेश था।

[अलका का प्रवेश]

अलका—गुरुदेव, यज्ञ का प्रारम्भ है।

चाणक्य—मालविका कहाँ है?

अलका—वह बन्दी की गयी और राक्षस इत्यादि भी बन्दी होने ही वाले हैं। वह भी ठीक ऐसे अवसर पर जब उनका परिणय हो रहा है। क्योंकि आज ही...

चाणक्य—तब तुम जाओ, अलके! उस उत्सव से तुम्हें अलग न रहना चाहिये। उनके पकड़े जाने के अवसर पर ही नगर भर में उत्तेजना फैल सकती है। जाओ शीघ्र।