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कुसुमपुर का प्रांत भाग—चाणक्य, मालविका और अलका

माल॰—सुवासिनी और राक्षस स्वतंत्र हैं। उनका परिणय शीघ्र ही होगा! इधर मौर्य कारागार में, वररुचि अपदस्थ; नागरिक लोग नन्दकी उच्छृंखलताओं से असन्तुष्ट हैं।

चाणक्य—ठीक है, समय हो चला है! मालविका, तुम नर्तकी बन सकती हो?

माल॰—हाँ, मैं नृत्य-कला जानती हूँ।

चाणक्य—तो नन्द की रंगशाला में जाओ और लो यह मुद्रा तथा पत्र, राक्षस का विवाह होने के पहले—ठीक एक घड़ी पहले—नन्द के हाथ में दे देना! और पूछने पर बता देना कि अमात्य राक्षस ने सुवासिनी को देने के लिए कहा था। परन्तु मुझसे भेंट न हो सकी, इसलिए वह उसे लौटा देने को लायी हूँ।

माल॰—(स्वगत) क्या?—असत्य बोलना होगा! चन्द्रगुप्त के लिए सब कुछ करूँगी। (प्रकट)—अच्छा।

चाणक्य—मैंने सिंहरण को लिख दिया था कि चन्द्रगुप्त को शीघ्र यहाँ भेजो। तुम यवनों के सिर उठाने पर उन्हें शान्त करके आना, तब तक अलका मेरी रक्षा कर लेगी। मैं चाहता हूँ कि सब सेना वणिकों केरूप में धीरे-धीरे कुसुमपुर में इकट्ठी हो जाय। उसी दिन राक्षस का ब्याह होगा, उसी दिन विद्रोह होगा और उसी दिन चन्द्रगुप्त राजा होगा!

अलका—परन्तु फिलिप्स से द्वंद्व-युद्ध से चन्द्रगुप्त को लौट तो आने दीजिए, क्या जाने क्या हो!

चाणक्य—क्या हो! वही होकर रहेगा जिसे चाणक्य ने विचार कर के ठीक कर लिया है। किन्तु अवसर पर एक क्षण का विलम्ब असफलता का प्रवर्तक हो जाता है।

[मालविका जाती है]