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चन्द्रगुप्त
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में जिनसे तलवारें मिली थीं, उनसे हाथ मिला कर—मैत्री के हाथ मिला कर जाना चाहता हूँ।
चाणक्य—हम लोग प्रस्तुत हैं सिकन्दर! तुम वीर हो, भारतीय सदैव उत्तम गुणों की पूजा करते हैं। तुम्हारी जल-यात्रा मंगलमय हो। हम लोग युद्ध करना जानते हैं, द्वेष नहीं।
[सिकन्दर हँसता हुआ अनुचरों के साथ नौका पर आरोहण करत हैं, नाव चलती है]