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एक में मिलाया। यूनानी लेखको ने लिखा है कि Zandrames ने बहुत सेना लेकर सिकन्दर से मुकाबिला किया। उन्होने उसे प्राच्य देश के राजा Zandrames को, जो नन्द था, भूल से चन्द्रगुप्त समझ लिया—जो कि तक्षशिला में एक बार सिकन्दर से मिला था और बिगडकर लौट आया था। चन्द्रगुप्त और सिकन्दर की भेट हुई थी, इसलिए भ्रम से वे लोग Sandrokottus और Zandrames को एक समझकर नन्द की कथा को चन्द्रगुप्त के पीछे जोडने लगे ।

चन्द्रगुप्त ने पिप्पली-कानन के कोने से निकलकर पाटलीपुत्र पर अधिकार किया। मेगास्थनीज ने इस नगर का वर्णन किया है और फारस की राजधानी से बढ़ कर बतलाया है । अस्तु, मौर्य्य की दूसरी राजधानी पाटलीपुत्र हुई ।

पुराणो के देखने से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त के बाद नौ राजा उसके वश मे मगध के सिंहासन पर बैठे। उनमे अन्तिम राजा वृहद्रथ हुआ, जिसे मारकर पुष्यमित्र—जो शुग-वश का था--मगध के सिंहासन पर बैठा , किन्तु चीनी यात्री हुएनत्साग, जो हर्षवर्धन के समय में आया था, लिखता है---“मगध का अन्तिम अशोकवशी पूर्णवर्मा हुआ, जिसके समय में शशाकगुप्त ने बोधिद्रुम को विनष्ट किया था। और उसी पूर्णवर्म्मा ने बहुत-से गौ के दुग्ध से उस उन्मूलित बोधिद्रुम को सीचा, जिससे वह शीघ्र ही फिर बढ गया ।" यह बात प्राय सब मानते है कि मौर्य्यवश के नौ राजाओ ने मगध के राज्यासन पर बैठकर उसके अधीन के समस्त भूभाग पर शासन किया । जब मगध के सिंहासन पर से मौर्य्यवशियो का अधिकार जाता रहा, तब उन लोगो ने एक प्रादेशिक राजधानी को अपनी राजधानी बनाया । प्रबल प्रतापी चन्द्रगुप्त का राज्य चार प्रादेशिक शासको से शासित होता था। अवन्ती, स्वर्णगिरि, तोषली और तक्षशिला में अशोक के चार सूबे- दार रहा करते थे। इनमें अवन्ती के सूबेदार प्राय राजवंश के होते थे । स्वय अशोक उज्जैन का सूबेदार रह चुका था । सम्भव है कि