पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/१२२

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स्थान—वंदीगृह, घायल सिंहरण और अलका

अलका— अब तो चल-फिर सकोगे?

सिंह०— हाँ अलका, परन्तु बन्दीगृह में चलना-फिरना व्यर्थ है।

अलका— नहीं मालव, बहुत शीघ्र स्वस्थ होने की चेष्टा करो। तुम्हारी आवश्यकता है।

सिंह०— क्या?

अलका— सिकन्दर की सेना रावी पार हो रही है। पचनद से सधि हो गई, अव यवन लोग निश्चिन्त होकर आगे बढ़ना चाहते है। आर्य चाणक्य का एक चर यह सदेश सुना गया है।

सिंह०— कैसे?

अलका—क्षपणक-वेश में गीत गाता हुआ भीख माँगता आता था, उसने सकेत से अपना तात्पर्य कह सुनाया।

सिंह०— तो क्या आर्य्य चाणक्य जानते है कि मैं यहाँ वन्दी हूँ?

अलका— हाँ, आर्य्य चाणक्य इधर की सब घटनाओं को जानते है?

सिंह०— तब तो मालव पर शीघ्र ही आक्रमण होगा।

अलका— कोई डरने की बात नहीं, क्योकि चन्द्रगुप्त को साथ लेकर आर्य्य ने वहाँ पर एक बड़ा भारी कार्य किया है। क्षुद्रको और मालवो में सधि हो गई है। चन्द्रगुप्त को उनकी सम्मिलित सेना का सेनापति बनाने का उद्योग हो रहा है।

सिंह०—′′′ ( उठकर)′′′— तब तो अलका , मुझे शीघ्र पहुँचना चाहिए।

अलका— परन्तु तुम वन्दी हो।

सिंह — जिस तरह हो सके अलके, मुझे पहुँचाओ।

अलका— '(कुछ सोचने लगती है)— तुम जानते हो कि मै क्यो वन्दिनी हूँ?

सिंह०— क्यों?

अलका— आम्भीक से पर्वतेश्वर की संधि हो गई है और स्वंय