पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९८

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१३ दूसरा हिस्सा थी ही देर में वह फौज इस पहाड़ी के नीचे श्रा कर रुक गई जिस पर वे दोनों खड़े थे श्रीर एक अदमी पहाड के ऊपर चढ़ता हुआ) दिखाई दिया जो बहुत जल्द इन दोनों के पास पहुँच सलाम कर खड़े हो गया है। इस नये आये हुए आदमी की उछ भी पचास से कम न होगी । इसके सर और मूछों के बाल चौथाई सुफेद हो चुके थे। कद के साथ सय १३सूरत मैहर भी कुछ लम्बा था । इसका रंग सिर्फ गोरा ही न या बल्कि अभी तक रगों में दौडती हुई खून की सुर्वी इसके गालों पर भच्छी तरह उभई रही थी । वड़ी बड़ी स्याह और जोश भरी श्रीखों में गुलाबी रिया चहुत भली मालूम होती थी । इसकी पौशाक ज्यादै कीमत का या कामदार न थे मगर कम दाम को भी न थी, उम्टे और मोटे स्याह मखमल की इतनी चुत थी कि उसके अगों की सुडौली कपड़े के ऊपर से जाहिर हो रही थी । कसर में सिर्फ एक खञ्जर और लपेटा हुअा कमन्द दिखाई देता था, बगल में सुर्ख मखमल का एक बटुक्रा भी ॐ रहा था । पाठकों को भ्याई देर तक हैरानी में न डाल कर हम साफ साफ कई देना है। पसन्द करते हैं कि यह तेजसिंह हैं और इनके पहले पहुँचे हुए दोनों झाडमियों में एक राजा वीरेन्द्रसिंह और दूसरे उनके छोटे लड़के और मानन्दसिंह है जिनके लिए हमें ऊपर बहुत कुछ फजूल वक जाना पड़ा। राज{ बरेन्द्रसिंह अौर तेजसिंह कुछ देर तक सलाह करते रहे, इसके घाद तीन बार पहाड़ी के नीचे उतर अपनी फौज में मिल गए और दिल खुश करने के सिवाय यहादुरों को जोश में भर देने वाले वादे को वाज के वालों पर एक साथ कदम रखती हुई बद्द फौज दक्खिन की वरफ रवाना हुई ।