पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/७२

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महिला हिंसा सुर ग के अन्दर नाना सत्र नहीं थी, या तो कोई मेरा दुश्मने आ पःचा या फिर मैरी सखियों में से किसी ने भएड फोड़ा !?' इसी चक्र से इन्द्रज्ञतनिहू का खौफ भी उसके लेने में बँट गया और वह इतना घबराई कि किसी तरहूँ अपने सम्हन न सर्की, बहाना करके इनके पास से उद व हुई और बाहर दालान में जाकर टहलने ज़रि ।। इन्द्रजीत सिंह भी उसके चेहरे के चढ़ाव उतार से उस चित्त का भाव समझ गये और बहाना करके बाहर बार्ता सय रोकना मुनासिं न मम कर चुप २६ ।। | अाध घण्टे तक साधवी उसे दालान में टहलते ही, जब इसका जो कुछ ठिकाने हुग्रा तब उसने टलन बन्द किया श्रर एक दूसरे मरे में चली गई इसमें उसकी दो रवि का डेरा था अहे वह जी जान से सानती थी यौर जिनफा हुने कुछ भरोसा भी रखती थी । ये दोनों सनियाँ भी जिनका नाम ललिता र तिनलगा थ} इसे बहुत चाहती सी और ऐयारी विद्या को भी अच्छी तरह ब न दी थी । साधवी को कृममय आते देख उन दोनों सच्चियाँ जो इस चक पन्नग पर लेटी हुई कुछ बातें कर रही थी बचा कर उठ बैठों और तिलोत्तमा ने आगे बढ़ कर पृछा, "दिन क्या है जो इस वक्त यहाँ श्राई हैं। १ तुम्हारे चेहरे से भी रद्द की निशानी शई जाती है !" । माधवी० } क्या कहूँ वहिन, इस समय वह बात हुई जिसकी कभी उाद न थी ! ललित.० } म क्या, कुछ कहो तो ! धनं० } चलो बैठो कहती हूँ, इ लिये तो ऋ ई हैं । गैठने के वाद कुछ देर तक त; माधब चुप रही, इसके बाद इन्द्रजीत {मह से जो कुछ बातचीत हुई थी वह कर बोली, इस कोई शक नहीं कि किशोर दा ई दूत युद्दा ! १६ श्रीर उसी ने यह सव ई पोला हैं । * तो उस समय खट्टकी थीं जच उनसे गीले कपड़े १३ सुर । ॐ | ११