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चन्द्रकांता सन्तति
 

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६५. चन्द्रकान्ती सन्तति छिडकाव कर गया है, घूम घूम कर देखने से धुले धुलाये रंग बिरंगी पत्त की कैफियत और उन सफेद कलियों की बहार दिल और जिगर को क्या ही ताकत दे रही है, जिनके एक तरफ का रंग तो असली मगर दूसरा हिस्सा अस्त होते हुए सूर्य की लालिम पड़ने से ठीक सुनहली हो रहा है। उसे तरफ से आये हुए खुशबू के झपेटे कहें देते हैं कि अभी तक तो आप दृष्टीन्त ही में अनहोनी समझ कर कहा सुना करते थे मगर अब 'सोने और सुगन्ध वाली कहावत देखिये श्रापकी आँखों के सामने मौजूद ये अधचिली कलियाँ सच किये देती हैं। चमेली की टट्टियों में नाजुक नाजुक सफेद फूल तो खिले हुए हुई हैं मगर कहीं कहीं पत्तियों में से चुन कर शाई हुई सूर्य की आखिरी किरणे धोखे में डालती हैं । यह समझ कर कि अाज इन्हीं तुफेद चमेलियों में जर्द चमेली भी खिली हुई है शौक भरा हाथ बिना बड़े नहीं रहता । सामने की बनाई हुई सब्जी जिसकी दूर्व बढी सावधानी से काट कर मालि ने सव्ज़ मखमली फर्श का नमूना दिखला दिया है, प्रॉखों को क्या हो तरावट दे रही है। देखिये उसी के चारों तरफ सजे हुए गमलों में खुशरग पत्त वाले छोटे छोटे जगली पौधे अपने हुस्न और चमान के घमण्ड में कैसे ऐंठे जाते हैं। हर एक रविश और क्यारियों के किनारे किनारे गुलमेहदी के पेड़ ठीक पल्टनों की कतार की तरह खड़े दिखाई देते हैं, क्योकि छुटपने ही से उनकी फैली हुई डालियों काट काट कर मालियों ने मनमानतीं सूरतें बना डाली हैं। कहने ही को सूरजमुखी ( सूर्यमुखी ) का फून सूर्य की तरफ घूम रहता है मगर नहीं, यहाँ तो देखिये सामने सूर्यमुखी के कितने ही पेड़ लगे हैं जिनके बड़े बड़े फुले अस्त होते हुए दिवाकर की तरफ पीठ किये हसरत भरी निगाहों से देखनी हुई उस सीन नाजनीन के अलौकिक रूप की छुटा देख रहे हैं जो इस बार के बीचोबीच बने हुए कमरे की झुत पर खडी उसी तरफ देख रही है जिधर सूर्य भगवान श्रस्त हो रहे हैउधर ही से बाग में आने का रास्ता है, मालूम होता है किसी आने वाले की राह