पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५२

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा शिव० | क्यों नहीं मिलेंगी ! भैरो० } ईश्वर अापको सलामत रक्खे, क्या इन्साफ किया है। आरो सुनिये, जब हम लोगों ने अपनी चीजें मिया बाकर से मांगीं तो बस या श्रीर खञ्जर तो दे दिया मगर बटुये में जो कुछ रकम थी गायब कर गये । दो दो चार चार अशर्फिया और दस दस बीस बीस रुपये तो छोड दिए वाकी अपनी कत्र में गाड़ आये 1 अब इन्साफ आपके हाथ है। शिव० । ( वाकर से ) क्यों जी, यह क्या मामला है । वाकर | महाराज ये सब झूठे हैं । भैरो० । जी हा हम सब के सब झूठे हैं श्रीर आप अकेले सच्चे | शिव० । ( भैरो से ) खैर जाने दो, तुम लोगों को जो कुछ गया है। इमसे लेकर अपने घर जाओ, हम वाकर से समझ लेंगे । भैरो ० १ महाराज सौ सौ अशर्फिया तो इन लोगों की गई है और एक गठरी जवाहिरात की मेरी गई। अब बहुत बखेडा कौन करे, उस एक हजार अशर्फिया मंगवा दीजिये हम लोग घर का रास्ता लें, रकम तो ज्यादे गई है मगर खैर आपका क्या कसूर ! | वाकर० | यारो गजब मत करो !! । भैरो० 1 हा साहब हम लोग गजव करते है, खैर लीजिये अब एक पैसा न मागेगे, जी मैं समझ लेगे वैरत किया, अब चुनार भी न जायंगे ! ( उठना चाहता हैं )। | शिव० { अजी घबराते क्यों हो, जो कुछ तुमने कहा है हम देते है न !( वाकर से ) क्या तुहारी शामत थाई है !! महाराज शिवदत्त ने बाकरअली को ऐसी हाट बताई कि वह बेचारा | चुपके से दूर जा खड़ा हुआ हजार अशर्फिया मगवा कर भैरोसिंह के आगे रख दी गई', ये लोग अपने अपने बटुये में रख उठ खड़े हुये, यह भी ने पूछा कि तुम्हारी कौन कैद हो गया जिसके लिये इतना सह रहे हो,