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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति इम तहखाने में किशोरी शौर कुशुर आनन्दसिंह का जो कुछ काले ६ ऊपर लिखे ग्राये है वह सब कुछ कुन्दन ने देखा था । आखिर में कुन्द नीचे उतर ग्राई और उस पल्ले को जो जमीन में था उसी वाली से पीत कर तहखाने में उतरने बाद बत्ती बाल कर देखने लगी है छत की वर निगाह करने से मालूम हुआ कि वह सिंहासन पर बैठी हुई भयानः मूति जो कि भीतर की तरफ से बिल्कुल ( सिहासन सहित ) पोनी थी उसके सिर के ऊपर है। कुन्दन फिर ऊपर भाई और दीवार में लगे हुए दूसरे देव को पोल कर एक सुग्द्ध में पहुंची । कई कदम जाने वाद एक छोटं पिडकी मिली । उम ताल से कुन्दन ने उस खिड़की को भी खोला अब वह उस रास्ते में पहुच गई थी जो दीवानखाने और तहखाने । आने जाने के लिए था और जिस रह से महाराज शाते थे ! तहखाने है। दावानजाने में जाने तक जितने वजे थे सभ को कुदन ने अपनी ताल मे बन्द कर दिया, ताले के अलावे उन दबाजों में एक एक खटका और भी था उसे भो कुन्दन ने चढ़ा दिया । इस काम में छुट्टी पाने बाद फिर वहा पहुँची जहाँ से भयानक भूति प्रौर आदमी सन्न दिखाई दे रहे थे। कुन्दन ने अपनी ग्रॉसों से राजा दिग्विजयसिह की घेवडाइट दे, ले। ८वजा बन्द हो जाने से उन्हें इ ई थी । मौका दे कर कुन्दन वहा से उतरी और उस तहखाने में जो उस भयानक मृत के नीचे था पईची ! थोडी देर तक कुछ बुकने बाद इन्दन ने ३ ही शल कहे जो जग भयानक मूर्ति के मुंह से निकले हुए राज दिग्विजयसिंह था शौर लोगो ने सुने थे और जिनके मुताकि किशोरी दरिद नम्वर की कैदी में बन्द कर दी गई थी । असल में वे शब्द कुन हो के कड़े हुए थे जो तब लोगों ने मुने थे । | बुन्दन घर में निकल कर यह देने के लिए कि राजा किशोरी को उग कोटी में चट करता है या नहीं, फिर उस छत पर पहुची चहा से