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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चंद्रकान्ता सन्तति दिग्वि० ( ईश्वर करे जल्द ऐसा मौका आवे, अब तो आपको बहुत जल्द रोहतीसगढ़ चलना चाहिये ।। बीरेन्द्र० १ ( तेजसिंह को तरफ देख कर ) इन्द्रजीतसिंह के बारे में फ्या वन्दोवस्त हो रहा है ? तेज० । मैं बेफिक्र नहीं हैं, जासूस लोग चारो तरफ भेजे गये हैं ? इस समय तक रोहतासंगढ़ की कार्रवाई में फंसा हुआ था, अवे स्वयं उनकी खोज में जाऊगी, कुछ कुछ पता लग भी गया है । वीरेन्द्र ० । हा ! क्या पता लगा है ? तेज० | इसका हाल कल कहूगा, आज भर और सत्र कीजिये । रजा वीरेन्द्रसिंह अपने दोनों लड़कों को बहुत चाहते थे, इन्द्रजीतसिंह के गायब होने का रेञ्ज उन्हें बहुत थी, मगर वह अपने चित्त के भाव को भी खूब ही छिपाते थे और समय का ध्यान उन्हें बहुत रहता। यो । तेजसिंह का भरोसा उन्हें बहुत यो श्रौर उन्हें मानते भी बहुत थे, जिस काम में उन्हें तेजसिंह रोकते थे उसका नाम फिर वह जबान पर तब तक न लाते थे जब तक तेजसिंह स्वयम् उसका जिक्र न छेडते, यही सवय था कि इस समय वे तेजसिंह के सामने इन्द्रजीतसिंह के बारे में और कुछ न बोले । । दूसरे दिन महाराज दिग्विजयसिंह सेना सहित तेजसिंह को रोहतासगढ़ किले में ले गये । के शेर अानन्दसिंह के नाम का डंका बजाया गया } यह मौका ऐसा था कि खुशी के जलसे होते मगर कु झर इन्द्रजीतसिंह के सयाल से किसी तरह की खुशी न की गई। राज्ञा दिग्विजयसिंह के अतीव र खातिरदारी से राजा वीरेन्द्रसि र उनके साथ लोग बहुत प्रसन्न हुए। दूसरे दिन टीनानाने । थो श्रादभिया की कमेटी इमलिए की गई कि अब क्या करना चाहिये इस कमेटी में केवल नीचे लिखे बहादुर और ऐयार लोग इकडे येराजा वीरेन्द्रसिंह, कुअर नन्दसिद्द, तेजसिंह, देवीसिंह, पडित बद्रीनाः