पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७३
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा हिस्सा दसवीं बयान दूसरे दिन सन्ध्या के समय राजा वीरेन्द्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहशरगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे । पडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारा सिंह, च्योतिबीजी, कुअर अनिन्दसिंह गौर तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने अपने तौर पर सभी ने रोहतासगढ़ के तहखाने का हाल कह सुनाया शोर अन्त में वीरेन्द्रसिंह तेजसिंह से बातचीत होने लगी :--- वीरेन्द्र० । रोहतासगढ़ के बारे में अब क्या करना चाहिये । | तेज० । इसमें तो कोई शक नहीं कि रोहतासगढ़ के मालिक श्राप हो चुके । जप राजा और दीवान दे न पके कब्जे में आ गये तो अब किस बात की कसर रह गई है। अब यह सोचना है कि राजा दिग्विजय सिंह के साथ क्या सलूक करना चाहिये ।। वीरेन्द्र० | और किशोरी के लिये क्या बन्दोबस्त करना चाहिये ।। तेज { जी हां, यही दो बातें है। किशोरी के बारे में तो मैं अभी कुछ कह नहीं सकता, वाकी राजा दिग्विजयसिंह के बारे में मै पहिले आपकी राय सुनना चाहता हूँ ।। वीरेन्द्र० } मेरी राय तो यही है कि यदि वह सच्चे दिल से तावेदारी कबूल करे तो रोहतासगढ़ पर खिराज ( मालगुजारी ) मुकरर करके उसे छोड़ देना चाहिए। तैज० । मे भी यही राय है ।। भैरो० | यदि वह इस समय कबूल करने के बाद पीछे बेईमानी पर इमर वाधे तो है। ते ३० } ऐसी उम्मीद नहीं है। जहा तक मैने सुना है वह ईमानदार सच्चा श्रीर बहादुर जाना गया है, ईश्वर न करें यदि उसकी नीयत कुछ दिन बाद वेदले भी जाय तो हम लोगों को इसकी परवाह न करनी चाहिए ।