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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिस्सा दारोगा | मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि श्राप से श्राप के अर अनिन्दसिंह हम लोगों के कब्जे में आ गये । | राजा० । ( सिर से पैर तक ज्योतिपीजी को अच्छी तरह देख कर } ताज्जुब है कि आप ऐसा कहते हैं। मालूम होता है कि अाज अापकी अकिल चरने चली गई है ! छिः । । दारोगा० } ( घटा कर और हाथ जोड़ कर ) तो क्या महाराज ! राजा ० 1 ( रज़ हो कर } फिर भी आप पूछते हैं सो क्या ? शाम ही कहिये कि आनन्दसिंह अपि से आप यहाँ आ फेसे तो अपि क्यों खुश हुए। दारोग । मैं यह सोच कर खुश हुया कि जब इनकी गिरफ्तारी का हाल राजा बीरेन्द्रसिंह सुनेंगे तो जरूर कहला भेजेंगे कि अनिन्दसिंह को छोड़ दीजिए इसके बदले में हम कुअर कल्याण सिंह को छोड़ देंगे । राजा० । अब मुझे मालूम हो गया कि तुम्हारी अकिल चरने गई है। या तुम वह दारोगा नहीं हो कोई दूसरे हौ । । दारोगा ० } ( कॉप कर ) शायद आप इसलिये कहते हैं कि मैने जो कुछ प्रज किया इस तहखाने के फायदे के खिलाफ किया ! | राजा ! हाँ, अब तुम राह पर श्रये ! बेशक ऐसा ही है । मुझे इनके यहाँ ग्रा फंसने का वडा रज है । अत्र में अपनी श्रीर अपने लटके की जिन्दगी से भी नाउम्मीद हो गया । बेशक अर्व यह रोहतासरोड़ उजाड हो गया । मैं किसी तरह फायदे के खिलाफ नहीं कर सकता । चाहे जो हो अानन्दसिंह को अवश्य मारना पड़ेगा और इसका नतीजा बहुत ही बुरा होगा । मुझे इस बात का भी विश्वास है कि कुअर अनिन्दसिट् पहिले पहिले यहाँ नहीं श्राचे बकि इनके कई ऐयार इसके पहले भी जरूर पहा यार व हाल देने गये होगें । कई दिनों से यहाँ के मामले ३३ जी विचित्रता दिखाई पड़ती है यह सब उसी का नतीजा है। सच तो यद् हैं कि इस समय की बात सुन कर मुझे ग्राम पर भी शक हो गया है । यहाँ का दारोगा इस तर नन्दसिंह के फेसने से कभी