पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२३५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
४८
 

________________

चॅन्द्रकान्ता सन्तति देर लगेगी, वह घबराया और सोचने लगा किं तद तक क्या करना चाहिये १ यकायक उसका ख्याल उन दोनों तस्वीरो पर गया जो दीवार के साथ लगी हुई थीं । जी में आया कि इस समय यहा सन्नाटा है, साधू महाशय भी नहीं है, जरा पर्दा उठा कर देखें तो यह तस्वीर किसने है । नहीं नहीं कहीं ऐसा न हो कि साधू आ जाइँ अगर देख लेंगे तो रञ्ज होंगे जिस तस्वीर पर पदों पड़ा हो उसे बिना श्राशी कभी न देखना चाहिये । लेकिन अगर देख ही लेंगे तो क्या होगा ? साधू तो अन ही कहे गए हैं कि हम धण्टे भर में वेंगे, फिर डर किसका है ? | नानक एक तस्वीर के पास गया और डरते डरते पर्दा उठाया । तस्वीर पर निगाह पड़ते ही चह खौफ से चिल्ला उठा, हाथ से पदी गिर पहा, फिता हुश्री पीछे हटा और अपनी जगह पर आ कर बैठ गया, यह हिम्मत न पड़ा कि दूसरी तस्वीर देखे ।। यह तस्वीर दो औरत और एक मर्द की थी, नानक उन तीनों को पहिचानता था। एक शौरत तो रामभोली और दूसरी वह थी जिसके घोड़े पर सवार हो कर रामभोवती चली गई थी और जो नानक के देखते देउते कुए में कूद पड़ी थी, तीसरी ननिक के पिता की थी। उस तस्वीर झा भाव यह था कि नानक का पिता जमीन पर पड़ा हुआ था, दुसरी शौरत उसके सर के च ल पकड़े हुए थी, और रामली उसकी सृति पर सवार गले पर छुरी फेर रही थी। | इस तस्वीर देख घर ननक की अजमे हालत हो गई । वह एक दम घड़ा उठा और पीती हुई बाते उसकी खा के सामने इस तरह मालूम होने गं जैसे न हुई हैं। अपने बाप की हालत याद कर इराफी ग्रा? यह श६ र कुछ देर तक सिर नीचे फ़िये कुछ सोचता रहा । पिर में उसने एक लम्बी सास ली श्ररि सिर उठा कर हा, “फ ! क्या मेरा बाप इन श्रेरित के हाथ से मारा गया ! नहीं