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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति उतारू हुई और मेरी सच्ची मुहब्बत का कुछ खयाल न किया । मुझे धन दौलत की परवाह नहीं और न मुझे तुम्हारे गूंगी होने की रञ्ज है, वेस मैं इस बारे में ज्यादे बातचीत करना नहीं चाहता, या तो मुझे घूल , करो या साफ जवाब दो ताकि मैं इसी जगह तुम्हारे सामने अपनी जान * देकर हमेशे के लिये छुट्टी पाऊँ। मैं लोगों के मुंह से यह नहीं सुना चाहता कि रामभोली के साथ तुम्हारी मुहब्बत सच्ची न थी और तुम कुछ न कर सके। रामभोली० । (शृंगी औरत ) अभी मैं अपने काम से निश्चिन्तु नहीं हुई, जब आदमी बेफिक हो ।। है तो शादी व्याह और ई सी खुशी की बातें सूझते हैं, मगर इसमें शक नहीं कि तुम्हारी मुहब्बत सच्ची है और मैं तुम्हारी कदर करती हूँ। नान के० । जब तक तुम अपने कामों से छुट्टी नहीं पाती मुझे अपने साये रखो, मैं हर एक काम में तुम्हारी मदद करूगा और जान तक देने को तैयार रहूँगा । | रामभोजी० । खैर मैं इस बात को मन्जूर करती हैं, सिराहियों को समझी दो कि बड़े से ले जानें और इसमें जो कुछ चीज हैं अपनी हिफाजत में रक्खें, क्योंकि वह लोहे का हव्या भी जर तुम कल लाये थे मैं इस नाय में छाई जाती हैं। नानकप्रसाद खुशी के मारे ऐंठ गये । बहर र सिप हियों को बहुत कुछ समझाने बुझाने के बाद आप भी हर तरह से लैस हो बदन । पर ए लगा साथ चलने को तैयार हो गये । रामभोली शीर न न चाहे ] फे चे उतरे । इशारा पाझर माझियों ने जड़ा खोल दिया और वह फिर इव की तरफ जाने लगा। नानक फो साथ लिये हुए रामभौली जगल में घुमी । थोड़ी ही दूर फिर वह एक ऐसी जगह पहुंची जहा बहुत सी १गदृन्डिया यो, खड़ी