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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति ऐयार मौजूद थे। सव के पहिले किशोरी को बन्दोबस्त करना चाहिये, उसकी हिफाजत में किसी तरह की छमी न होनी चाहिए । | महा० । जहाँ तक मैं समझता हूँ वे लोग किशोरी को तो किसी तरह नहीं ले जा सकते हाँ वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने जिस तरह भी हो सके गिरफ्तार करना चाहिये ।। | रामा० । चीरेन्द्रसिंह के ऐयार तो अब मेरे पजे से बच नहीं सकते। वे लोग सूरत बदल कर दर में जरूर आवेंगे, और ईश्वर चाहे तो आज ही किसी को गिरफ्तार करूँगा, मगर वे लोग बड़े ही धूर्त और चालवाज हैं, प्रायः कैदखाने से भी निकल जाया करते हैं। | महा० । खैर हमारे तहखाने से निकल जायँगे तो समझेगे कि चालाक और धूर्त हैं। महाराज की इतनी ही बातचीत से तेजसिंह को मालूम हो गया कि यहाँ कोई तहखाना है जिसमें कैदी लोग रक्खे जाते हैं, अब उन्हें यह फिक्र हुई कि जहाँ तक हो सके इस तहखाने का ठीक ठीक हात मालूम करना चाहिये । यह सोच तेजसिंह ने अपनी लच्छेदार बातचीत में महाराज को ऐसा उलझाया कि मामूली समय से भी आधे घण्टे की देर हो गई । ऐसा करने से तेजसिंह का अभिप्राय यह था कि देर होने से असली रामानन्द अवश्य महाराज के पास अवैगा और मुझे देख चौंकेगा, उसी समय में अपना वह काम निकाल लेगा जिसके लिये उसकी दाढ़ी मूड लाया हैं, और आखिर तेजसिंह का सोचना ठीक भी निकली ।। तेजसिंह गमानन्द की सूरत में जिस समय महाराज के पास श्राए थे उस समय योढ़ी पर जितने सिपाही पहरा दे रहे थे वे सब बदल गए श्रीर दूसरे सिपाहीं अपनी बारी के अनुसार ड्योढ़ी के पहरे पर मुस्तैद हुए जो इस बात से बिल्कुल ही बेखवर थे कि रामानन्द महाराज से मिलने के लिये महल में गए हुए हैं। ठीक समय पर ग्वार लग गया | बड़े बड़े शोहदेवार, नायचे