पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१९८

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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिस्सा वही दादी और मै छ जो मुडे लाये थे दुरस्त करके खुद लगा वोठड़ी से वाटेर निकले और शहर में गश्त लगाने लगे, सवेरी रोते तक राजमएल की तरफ रवाना हुए शोर इत्तला क्या कर महाराज के पास पहुंचे। हम ऊपर लिप अाए हैं कि गेहतामगढ़ में रामानन्द श्रोर गोविन्टसिंह केवल दो ही ऐयार थे। इन दोनों के बारे में इतना गैर लिख देना जरूरी हैं कि इन दोनों में से गोविन्दसिंह तो ऐयारी के पन में बहुत ही तेज और होशियार था श्रीर वह दिन रात सही काम किया करता था । रामानन्द भी ऐयारी का फद अच्छी तरह जानता था मगर उम अपनी दाढ़ी और में छ बहुत प्यारी थी इसलिये व ऐयारी के ये हैं काम करता था जिसमें दाढ़ी और में छ मुड़ाने की जरूरत न पड़े शोर इमलिये मगि ने भी उसे दीवानी को छान दे रखा था | उसमें भी ः शक नहीं कि रामानन्द बहुत ही खुशदिल मसग और बुरिमार थी अनि उसने अपनी तदबीरा से मानाज का दिन अपनी मुट्टी में कर लिया था । रामानन्द की सूरत बने हुए तेजसिंह महार के पार पहुंचे, मात्र से बहुत पहिले रमानन्द को आते देव मगज ने मना कि वे नई उर लाया है। मा० । झाज तुम बहुत सः शाये ! या फो नई उदर है ? मा० । ('पाँस कर) महाराज, मारे यहाँ ल' न ममान आये हैं। भर० { कोन कौन ? निउ | एक तो ाँ जिसने मुझे बहुत ही रा स रा है, दुमरे युअर नन्दनि, तीसरे ऽनके चार यार दो शान ही कल में किशोरी को 7 से निषाल ले जाने वा टावर ते ६ ।। मः । (स ) मेमान दो व नाजुक है ! इनकी पति को भी होई इन्तजाम किया गया है । न ? इन्जिः । इसीलिए से सरकार में ग्रा है । इस बार में उनके