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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्त सन्ततिं समय उसे पिटा करै मगर यह ख्याल करके ऐसा करने का हौसला ने पदा कि एक तो लटकपन दो से व इस देवर को नमकवार है और भाराज की भी उन पर निगाह रहती है, दूसरे अस्सी वर्ष का बुड्डा है, तीसरे करता है कि अभी इस शहर में पहुंचा हूं, महाराज का दर्शन कर चुका है, सरकार के भी दर्शन हो जायें तब आराम से सराय में डेरा डाऊँ, र मेरे से उसका यह दस्तूर भी है ।। न्ट्र० । अगर ऐसा है तो उसे अपने ही देना मुनासिब है ।। अनिन्द्र० । तर अाज किश्ती पर सैर करने का रगनजर नहीं आता है। इन्द्र० । या दृर्ज है, कल सही । चोदार सलाम करके चला गया और थोड़ी ही देर में सौदागर को ले कर जिर हुआ । हकीकत में वह सौदागर बहुत ही बुड्ढा शा, यामत ग्रौर शरफ्त उसके चेहरे से बरसती थी । आते ही मुलाम करके उगने दोनों भाइयों को दो अंगूठियों नजर दी और कबूल होने के बाद गइन पर कर जमीन पर बैठ गया ।। म भुइवें जयरी की इजत ही गई, मिजाज का हल सफर की *पियत पूछने उद देने पर जाकर गर्म करने और कल फिर हाजिर होने का हुक्म हुआ, तीदागर सलाम करके चला गया । मंदिर में जो दो टूठिया दोनों भाइयों को नजर दी थी उनमें प्रानन्दर्भिद् की अंगूठी पर निहायत खुरार मानिक जना हुआ था और दर्जनह् िकी अँगूठी पर सिर्फ एक छोटी सी तस्वीर थी जिसे दो एक र निग" भर र इन्द्रजीतसिंह ने देगा श्ररि कुछ सोच कर चुप हो रहे । | एरन्त होने पर रात के शुमटान की रोशनी में फिर उसे अॅटूटी ३ र नि नगीने की जद कमसिन इमीन अँरित की तस्वीर

: १ । चाहे थट तुन्दर निर्भर इन छोटो या न हो मगर मुसीवर ३ २ १ माई उम६ गचं कर थे | इ पर्ने देते एक मरतने तो इन्द्रादि । २ए लिन हो गई कि अपने का कोईर उस औरत की