पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१८८

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तीसरा हिस्सा
 

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तं. या भी मगर उन्हें भैरोसिंह ग्रान्टमि । तारामि न पचान ६ । उन तीने के पीछे नंगी तलवार लिए तेन प्रादमा भी द६ में जिन रून श्रर पेशाक से मालूम होता था कि वे जल्लाद हैं । इस बार के श्रीचर्यच चांदी के सिने पर 5 पर च एक दूग्त इतनी बड़ी बैठी हुई थे कि शादमी पास में पढ । र ) उस भैठी हुई मूरत के सिर पर हाथै न कुच सकता था | उस पूग्ने वा सूरत शक्ल में बारे में इतना ही लिपनी का है कि उसे श्राप के ? राक्ष समझ जिसकी तरफ, अग्वि उठा कर देखने से देर होता है । रोहि वराति और नन्दसिंह उसी जगए खई र दबने लग कि उन दलन में क्या हो रा है। अर्थ घण्टे को अवाज व ज़ोर में आ रही भी मगर यह नहीं मालूम होता था कि वद्द करावा ।। उन तीनों औरतों की जिसमें किशोरी भी थी छः अदिभिः• छौं तरह मजबूती से पा र बारी बारी से उस वाहे झूठ के पार हो ! * उसके पैरों पर जमती रिसर रखवा कर पीहे थे और फिर उसी के भने खड़ा कर दिया । | इसके नाद दो श्रादगी एक श्र२त को लेवर श्राग व जिसे प3 तीन दिमियों में से कोई भी नहीं हिचानता था, उस रत के । जो जल्लाद गरी तलवार लिए उ प य ग आगे दा | दं न म, ने उस शौरत को हि मूरत के ऊपर से जोर से हल दिया * देंगे देहाशा र पी, साथ ही जमाद ने एक हाथ तलवार का हो । * मिर कट कर दूर जा पा र ध परे लगा । इरः ६. ल ३३ दे में दो औरतें जिनमें चारी दिशा भी था बड़े जोर से चिल गवार हो यर जमीन पर गिर पहुई ।। | इस कैयत को देर घर नारे दोनों ओर र [ अर ः ६) जर हात में । इन्से कैं, मारे अंदर ने दगे । 4 ।