पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१८६

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तीसरा हिस्सा
 

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भीतर स्सिा ४ अने गत में भी उन चारदीवारी के प्रदर पे झा या जंगल का न होना ताज्जुब की बात है । मैं हि २ वहा की जमीन बहुत साप, पाहा छै? छोटे अंगन्नी वैर के न म द वही जरूर थे जो " किन तह नुक्न न पहुँचा सक? श्रर ने उनकी श्राद् में कोई प्रा लि हो सकता , मगर मरे हुए उ नत्र शौर हटियों की ब न २६ गह जग बद्ध हुई भयानक हो रही थी ! उ छरटवारी के अन्दर बन भी पढ़ें बनी हुई थी जिनमें कई क च तथा कई ई = चुनें शीर पदर की भी ६ र बीच में एक सब से बद का श्रृंगमर्मर की भी ६ । । | रे सिंह ने एटक के अन्दर पैर रही है। श्रीरत की जिसके पीछे २, ३ ३ वाली संगमर्मर की बड़ी के पर खड़े र चारों तरफ से १८ , मगर थोडे ही देर में वह देपत्तै ३१ गई। ग्यच हो गई । मेरो १. ६ में इन कद्र के पास जा कर उसे इ हा मगर पता न लगा, दुमी * ॐ ॐ, सफ श्रीर इधर उधर भी रोजा मगर कोई निशान न । मर । लविर चे श,नन्दसिंह र ३: ।मिर के पास लौट आए और बोले :-- ५ | | गई और तो वह ही चली गई जहा इसे लोग आदि। पन्द० । हो । भैरी ३ जा हो । मैन* } उभे जाने दीज, चलिए हम लं, भी हैं। अगर वह ते ६ भिलु ही जायगी को क्या इर्ज हैं ? एक औरत हुम लोगों का कुछ | में नीनों अदर्ग भी उस चारदीवारी के अन्दर गए शोर बन्द नाल संगमर्मर की च क पर फ्च कर खड़े हैं । गैहि न उग्र फल