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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ला मन्तत | इन के ठही में एक तहखाना था जिसमें उतर जाने के लिए छोटी छोटी में दियाँ बना हुई थः । ये दोनों नीचे उतर गई और वहां एक आदमी का बैठे 7 जि के साम | मोमबत्ती जल रही थी और वह कुछ लिख रहे। इस आदमी की उम्र लगमग साट वर्ष के होगी ! सर और मूछों के झाल श्रादे से ज्यादै सुद हो रहे थे तो भी उसके बदन में किसी तन्ह

  • न नजं । नह! मालूम होती थी। उसके हाथ पैर गठीले और मजबूत ५ तथा चैडो छाती उसकी बहादुरी को जाहिर कर रही थी । चाहे उनका र सावला क्यों न हो मगर चेहरा खूसूत और रोधीला था । बड़ी 1 ग्राख में अभी तक जवानी की चमक मौजूद थी, चुस्त मिरजई उसके बदन पर बहुत भली मालूम होती थी । सर नगा था मगर पास ही जमीन पर एक सुद मुडासा रक्खा हुआ था जिसके देखने से मालूम "ता था कि गरमी मालूम होने पर उसने उतार कर रख दिया है। उसके व हाथ में पखी था जिसके जरिए से वह गरमी दूर कर रहा था मगर अभी तक पीने की नमी बदन में मालूम होती थी ।

एक त फ टकई में थोड़ी सी श्रग थी जिसमें कोई खुशबूदार चीज ल रही थी जिनसे वह तहखाना अच्छी तरह सुगन्धित हो रहा था । कमला और किनरी के पैर की आहट पा वह पहले ही से सीढ़ियों की तरफ ध्यान लगाए था और इन दोनों को देखते ही उसने कहा, “तुम दीना आ गई ?” कमला ! ज हा 1 दिमी० 1( किन्नरी की तरफ इशारा करके ) इन्हीं का नाम कामिनी कमला० } जो हो । श्रादमी | कामिनी, अग्रिी बेटी, तुम मेरे पास बैठो । ॐ जिय न ह रमज़ा को समझता है अमी तरह तुम्हें भी मानता हूँ ।