पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१६४

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दूसरा हिस्सा
 

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| इसरा हिस्सा वीरेन्द्र० । हमने यह फी गद्दी पर नन्दसिंह को वैठा दिया है। इन्द्र० । बही खुशी की बात है, यह की इन्तजाम में बहुत अच्छी तरह कर सकेंगे क्योंकि यह तीर्थ का मुकाम है और इनको पुराणों से बड़ा प्रेम है और उन्हें अच्छी तरह समझने भी हैं । ( देवीसिंह की तरफ | देख कर ) इसाइप धर संदूक मगवाये जरा दिल ही बहले । हाथ भर का चौखुटा संदूक हाजिर किया गया और उसे खोल और | बिल्कु ने श्रजिया जिनसे वह सन्दुक भर रहा था बाहर निकाली गई। पढ़ने से मालूम हुआ कि यहा की रियाया नये राजा की अमलदारी से | बहुत प्रसन्न है लौर मुसारकबाद में रही है, हा एक अज उसमें ऐसी भी निकली जिसके पढ़ने से सभ को तरदद ने श्री घेरा श्रीर सोचने लगे कि अब दया करना चाहिए। पाठकों की दिलचस्पी के लिए हम उसे अर्जी की नकल नीचे लिख देते हैं - इस लग मुद्दत से मनाते थे कि यहाँ की गद्दी पर हुजूर को या हुजूर में पानदान में से किसी को वैठे देखें । ईश्वर ने आज हम लो। का प्रारज पूरी की और फसख्त माधवी शौर शग्निदत्त की बुर साया में लोगों के सर से हटाया । चाहे उन दोनों दुष्टों का खौफ अभ हम लोगों को देना हो गर फिर भी इज़र के भरोसे पर इम लोग बिना मुच रामाद दिए श्रीर दुशी मनाये नहीं रह सकते । वह दर इस बात का रही है कि यह फिर उन दुटि को अमलदारी होगी तो पष्ट गना पड़ेगा ! राम राम, ऐसा तो की हो ही नहीं मकता इम लोगों को यह गुमाने तो स्व में भी नहीं हो सकता, वह दर बिल्कुन दुसरा ही हैं। । एम लोग नीचे अर्ज करते हैं। प्राशा है कि वो अद उससे हम ६ फी रिहाई होगी, नहीं तो महीने भर में था की चौयाई रियाया चमलोक में पच जायगे । मगर नहीं, जुर के नाम और अपनी प्राप नजर रखने वाले ऐयारों के हाथ से चे वेईमान हरामजादे कर बच सकते हैं जिनके ट हैं हम ल फो पूरी नँद राना कभी नसोप नहीं होता ।