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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा चुनार से इनके साथ आए थे ऐयारी के फन में खुत्र होशियार किया । इस बीच में एक लडका और उसके बाद एक लटकी भी महाराज शिवदत्त के घर पैदा हुई । मौका पाकर अपने बहुत से आदमियों और ऐयारो को साथ ले वह शिवदत्तगढ़ के बाहर निकला थौर राजा बीरेन्द्रसिंह से बदला लेने की फिक्र में कई महीने तक धूमता रहा | बस महाराज शिवदत्त का इतना ही मुख्तसर हाल लिख कर हम इस बयान को समाप्त करते हैं और फिर इन्द्रजीतसिंह के किस्से को छेड़ते हैं ।। इन्द्रजीतसिंह के गिरक्तार होने के बाद उन बनावटी शेरों ने भी अपनी हालत बदली और असली सूरत के ऐयार बन बैठे जिनमें यारअली बाकरअली और खुदाबख्श मुखिया थे । महाराज शिवदत्त बहुत ही खुश हुआ श्रौर समझा कि अब मेरा जमाना फिरा, ईश्वर चाहे तो फिर चुनार की गद्दी पाऊँगा और अपने दुश्मनों से पूरा बदला लूगा । | इन्द्रजीतमिह को कैद कर वह शिवदत्तगढ़ ले गया | सभों को ताज्य इशा कि कु अर इन्द्रजीतसिंह ने गिरफ़ार होते समय कुछ उत्पात न मचाया, किसी पर गुस्सा न निकाला किसी पर हब न उठाया, यहां तक कि अॉखों से उन्होंने रञ्ज अफसोस या क्रोध भी जाहिर न होने दिया । {इकीकत में यह ताज्जुब की बात थी भी कि वहादुर वीरेन्द्रसिंह का शेरदिल नड़की ऐसी हालत में चुप रह जाय और विना हुनत किए बेड पहिर कुले, मगर नहा इसका कोई सबब जरूर है जो आगे चल कर मालूम होगा । तीसरा बयान धः चुनारगढ़ किले के अन्दर एक कमरे में महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्र ५ रिह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इन्द्रजीतसिंह और नन्दसिह इँटे। दए धीरे धीरे कुछ बातें कर रहे हैं । जति० । भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपने को इन्द्र। दीवसिंह को सुरत बना शिवदत्त के ऐयारों के हाथ फँसाया । ३