पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१३१

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चन्द्रकान्ता सन्तति से कई कमन्द लगा स पन्द्रह आदमी छत पर चढ़ आए श्रौर घरो घरों, जाने न पावै जाने न पावे ?' की आवाज आने लगी । बारहवाँ बयान कुर इन्द्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस थिचित्र इमारत श्रीर हसन औरत की तरफ देख रहे हैं । उनका इरादा हुआ कि तैर फर उस मकान में चले जाय जो इस तालाव के बीचौबीच में बना हुआ है मगर उस नौजवान औरत ने इन्हें हाथ के इशारे से मना किया बल्कि वहां से भाग जाने के लिए कहा ! उसका इशारा समझ ये रुक गए मगर जी न माना, फिर तालाब में उतरे । उस नाजनीन को जय विश्वास हो गया कि कुमार बिना यहा श्राप ३ माने तब उसने इशारे से ढहने के लिए का शौर यह भी कहा कि में किश्ती लेकर आती हैं। उस औरत ने किश्ती खेली और उस पर सवार हो अजीब तरह से घुमाती फिरती तालाब के पिछले कोने की तरफ ले गई शौर कुमार को भी उसी तरफ आने का इशारा किया । कुमार उस तरफ गए और खुशी खुशी उस औरत के साथ किश्ती पर सवार हुए 3 वह किश्ती को उसी तरह घुमाती फिरती मकान के पास ले गई । दोनों आदमी उतर कर मकान के अन्दर गए । उस छोटे से मन को सुजाचट कुमार ३ पसन्द की । वहा समी चीजें जरुरत की मौजूद थीं। बीच का बड़ा कमरा अच्छी तरह से सल्ला प्र था, बेशकीमती शीशे लगे हुए थे, काश्मीरी गलीचे जिनमें तरह तरद्द के फूल नृटे बने हुये थे बिछे थे, छोटी छोटी मगर ऊची समर्मर की चौकियों पर सजावट के सामान और गुलदस्ते लगाए हुए थे, गावे वज्ञान का सामान भी मौजूद था, दीवारों पर की तस्वीरों को बनाने में सुवरों ने अच्छी कारीगरी सर्च की थी | उस कमरे के बगल में एक र छूटा सा कमरर सना हुआ था जिसमें सोने के लिए एक मराइरी