पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१२५

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चन्द्रकान्ता सन्तति नही नहीं, मुझे कुन्दन की बातों पर विश्वास न करना चाहिए ! अच्छा देखा जायगा । कुन्दन ने बेमौके चोर चौर को शोर मचाया, कहीं ऐसा म हो कि बेचारी लाली पर कोई अफत झावे ! इन्हीं सब बातों को सोचती हुई किशोरी ने बची हुई थोडी रात किर ही बिता दी और सुबई की सुफेदी फैलने के साथ ही अपने कमरे के बाहर निकली योकि रात की बातों का पता लगाने के लिए उसको जी बेचैन हो रहा था । किशोरी जैसे ही दालन में पहुँची, सामने से कुन्दन को आते हुए देखा । कुन्दन नै पास अफिर सलाम किया और कहा, “रात को कुछ हाल मालूम है या नहीं ? किशोरी० 1 सब कुछ मालूम है ! तुम्हीं ने तो गुल भवाया था ! कुन्दन ( ताज्जुब से ) यह कैसी बात कहती ही है। किशोरी० । तुम्हारी आवाज साफ मालूम होती थी । कुन्दन० । मैं तो चोर चौंर का गुल सुन कर वहाँ पहुँची थी और उन्हें लोगों की तरह खुद भी चिल्लाने लगी थी १ । किशोरी० 1 ( इसे कर ) शायद ऐसा ही हो । कुन्दन० { प्त्या इसमें आपको कोई शक है । किशोरी० । देशक, लो यह लाली भी तो भा रही है । कुन्दन । ( कुछ घच कर ) जो कुछ किया उन्होंने किया । इतने ही में लाली भी भाकर स्थड हो गई और कुन्दन की तरफ देव कर ग्रोली, “श्रपिकी वीर ते खाली गयो ।' इन्दन । (घडार) मैने क्या, ..... लहरु ० १ ३८ रने दीजिए, अपने मैरी कार्रवाई कम देखी होगी अगर दो घन्टे पहिले में श्रापकी पूरी कार्रवाई मालूम कर चुकी थी । कुन्दन० । ( इटह्यास होकर ) प्राप तो फसम सा•••••• रुला० { हा ! मुझे । यदि है, मैं उसे नहीं भूलती हैं।