पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१०७

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दूसरा हिस्सा
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दूसरा हिस्सा कोत० । ( पहिले से ) स्य जी तुम्हारा भाई क्या कहता है ? पहिला० । जी ई ई.•..., कोत० 1 ( जोर से ) को साफ साफ, सौचने म्या हो ? पहिला० । जी बात तो यह ठीक है, अपि ही की तस्वीर थी । कोत० | फिर झूठ क्यों बोले ? पहिला• बस यही एक बात झूठ मुँह से निकल गई, अब कोई बात झूठ न कहूँगा, माफ कीजिये । कोतवाल बेचारा ताज्जुब में श्राकर सोचने लगा कि उस औरत को मुझसे क्यों कर मुहमत हो गई जिसकी खूबसूरती की थे लोग इतनी तरीफ कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद फिर पूछा :-- कोत० { हो तो आगे क्या हुआ ? पहिलो० } ( अपने भाई की तरफ इशारा करके ) बस यह उस पर शाशिक हो गया और उसे तंग करने लगा । दूसरा० । यद्द भी उस पर शाशिक हो उसे छेहने लगा । पलि० 1 जी नहीं, उसने मुझे कबुल कर लिया और मुझसे शादी करने पर राजी हो गई बल्कि उसने यह भी कहा कि मैं दो दिन तक यहाँ रह कर तुम्हारा श्रास देखेंगी, अगर तुम पालको लेकर अगि तो तुम्हारे साथ चली चलेंगी। दूसर० १ जी नहीं, यह चहा भारी सूठा है, जब यह उसकी खुशामद करने लगा तब उसने कहा कि मैं उसी के लिए जान देने को तैयार हैं। लिमकी तत्वर मेरे सामने है। जब इसने उसकी बात न सुनी तो उसने । अपनी तलवार मे इसे जख्मी क्रिया और मुझसे बोली कि तुम जाफर - मेरे दोस्त इहाँ हों ६३ निकालो ग्रौर कह दो कि मैं तुम्हारे लिए बर्वाद हो गई, अब भी ती सुध लो ।' बच मैंने इसे मना किया तो यह मुझसे लट एटा । असल में यह लड़ाई का सचय हुआ ।