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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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१६. चन्द्रकान्त सन्तति पड़े, घो को धरने के लिए छोड़ दिया और एक पेड़ के नीचे पत्थर की चट्टान पर बैठ बातचीत करने लगे...... दूसरा० 1 (सिर हिला फर ) नहीं कभी नहीं । पहिलो० । सरकार इसे हुक्म दीजिये कि चुप रहे, मैं कह हैं तो जो कुछ इसके जी में चे कहे । कौत० | ( दूसरे को डॉट कर ) बेशक ऐसा ही करना होगा । दूसरा० । बहुत अच्छा है। पहिला० | थोड़ी ही देर तक बैठे ३ कि पास ही से किसी अंग्त के रोने की बारीक श्रावी प्राई जिसके सुनने में कलेजा पानी हो गया । दूसरा । ठीक, बहुत टीक । कोत० 1 ( लाल श्राखें फर के ) क्यों जी, तुम फिर बोलते हो ? दूसरा० । अच्छा अश् न बोलँगई ।। पहिल१० । इस दोनों उठ कर उमफे पास गए। आह, ऐसी खून| सूरत शौरत तो ग्राज तक किसी ने न देखी होगी, बल्कि में जोर देकर कहता हूँ कि दुनिया में ऐसी खूबसूरत कोई दूसरी ने दी । वह अपने सामने एक तस्वीर जो चीठे में जुटी हुई थी, रक्खे चैटी थी और उसे देख फूट फूट कर रो रही थी । कोत: । वह तत्वीर किमी थी, तुम पहिचानते हो ? पहिला० } जी ही पहिचानता हूँ, ६ मेरी तस्वीर थी । दूसरा० | 5 झूठ शुळ, कभी नहीं, बेशक व तत्वीर ग्नापी थी, मैं इस समय चैट चैटा उस तस्वीर से अपनी सूरत मिलान कर गया, बिलकुल अपसे मिलती है इसमें कोई शक न, श्राप इरके हमें में गा बल देकर पूछिये क्सिको तदवीर थी १ के त० । ( ताज्य में शा कर ) क्या मै तन्वीर सं १ दूसरा० । बेशक श्राप तस्वीर थी, भाप इससे फराम देकर पृथि