पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
दूसरा हिस्सा
१८
 

________________

दूसरा हिस्सा कोतवाल० । उन दोनों की सूरत शक्ल कैसी है ? खिदमत० 1 दोनों भले श्रादमी मालूम पड़ते हैं, अभी मूछे नहीं निकलते हैं, बड़े ही खूबसूरत हैं, मगर खून से तरबतर हो रहे हैं । कोत० १ अच्छा फहो उन दोनों को हमारे सामने हाजिर करें । हुक्म पाते ही खिदमतगार फिर बाहर गया और थोड़ी ही देर में कई सिपाही उन दोनों को लिए हुए कोतवाल के सामने हाजिर हुए। नौकर की बात बिलकुल सच निकलो । वे दोनों कम उम्र और चहुसे ही खू उरत थे, वदन में लियास भी बेशकीमत था, कोई है उनके पास न था मगर दून से उन दोनों का कपडा तर हो रही थ! ।। कोत० । तुम लोग पुम में क्यों लडते हो और हमारे आदमियों से फसाद करने पर उतारू यॊ हुए १ । एक० } { सलाम करके ) हम दोनों भलै दिमी हैं। सरकारी सिपाहि ने बदजुबानी को, लाचार गुस्सा तो चढ़ा ही हुश थर, बिगड़ गई । कोतवाल { अच्छा इसका फेल! पीछे होता रहेगा पहिले तुम अह कहो कि आपस में क्यों खून खरावा कर चैटे और तुम दोनों का मकान कहा है । इसरा० } भी हम दोनों श्रा पकी रैयत हैं, गयाजी में रहते हैं, दोन ने भाई हैं, एक औरत के पीछे लाई हो रही दृ जिसका फैसला पिसे चाहते हैं, बाकी हाल इतने आदमियों के सामने कहा हम लोग पसन्द नहीं करते ।। कोतवाल इत्र ने सिर्फ उन देन को बहा रहने दिया बाकी सर्दी से पद से इस दिवा, निगला होने पर फिर उन दोनॅ से लड़ाई को सूत्र पृछ ! एफ० | हम दोनों भाई सरकार से कोई मीन। ठीको लेने के लिए या प्रा रहे थे, ये से तीस फोन पर एक पहाड़ी हैं, कुछ दिन रहते ही म ने चद्दा पहुंचे और थोडी मुन्ताने फी नीयत से घोड़े पर से उतर