पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१०

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पहिला हिस्सा
 

चाचीजी शेर से ना उत हे गौर जितने शेर उस जग्इ आए थे वे मन बावाजी चार तरफ धूने तथा मुहब्बत से उनके बदन को चाटने और सूधन लगे।व चार!दिम।धोडी देर तक वह और अटकने के बाद वविाजी से विदा है। अमे में शाये।

जब सन्नाटा हुआ भैरोसिंह ने इन्द्रजःतभिह से कहा,"मेरे दिमाग में इम समय बहुत सी बातें घूम रही हैं।मैं चाहताहूँ कि हम लोग चारों|आदिमी एक जगह बैठ कुमेटी कर कुछ राय पक्की करें।

इन्द्रजीतसिंह ने कहा,अच्छा आनन्द और तारा को भी इसी जगह बुला लो।

भैरोसिंह गये और आनन्दसिह तथा तारासिंह को उसी जगह बुला लाए।उस वक्त सिवाय इन चारा के उस खेमे में और कोई न रहा।भैरोसिंह ने अपने दिल को हालै कद्दा जिसे सभी ने बड़े गौर से सुना,इसके बाद पहर भर तक कुमेटी करके निश्चय कर लिया कि क्या करना चाहिए।

यह कुमेटी कैसी भई?भैरोसिंह का क्या इरादा हुशा श्रौर उन्होंने क्या निश्चय किया है?तथा रात भर वे लोग क्या करते रहे है?इसके कहनेकी कोई जरूरत नहीं, समय पर सब कुछ खुन जाय।

सवेरा होते ही चारो आदमी खेमे के बाहर हुए और अपनी फौज के सदर कञ्चनसिंह को बुला कुछ समझा बुझा बावाजी की तरफ रवाना हुए । जव लश्कर से दूर निकल गए,नन्दसिंह भैरोसिंह और तारासिंह ता तेजी के साथ चुचार की तरफ रवाना हुए, और अकले इन्द्रजीतसिंह शबाजी से मिलने के लिए गए।

बाबाजी शो के बीच में धूनी रमाए बैठे थे।दो शेर उनके चारो। तरफ घूम घूम कर पहरा दे रहे थे।इन्द्रजीतसिंह ने पहुँच कर प्रणाम किया और चार्ज ने प्रार्शीवाद देकर चैठने के लिए कहा।

इन्द्रजतसिंह ने बनिस्बत कल के आज दो शेर और ज्यादै देखे।थोड़ी देर चुप रहने के बाद बातचीत होने लगी है।