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निराला



से पैदा हुआ है; पहले यह पागल नहीं थी, न गूँगी; बाद को हो गई। मैंने सुन लिया। संगम ने किस ख़्याल से कहा, मैं सोच रहा था। उन दिनों कई आदमियों से बातें करते हुए मैंने पगली का ज़िक्र किया; साहित्य, राजनीति आदि कई विषयों के आदर्श पर बहस थी; कुछ हँसकर चले गए, कुछ गंभीर होकर और कुछ-कुछ पैसे उसे देने के लिये देकर।

मैंने हिन्दू, मुसलमान, बड़े-बड़े पदाधिकारी, राजा, रईस, सबको उस रास्ते से जाते समय पगली को देखते हुए देखा। पर किसी ने दिल से भी उसकी तरफ़ देखा, ऐसा नहीं देखा। जिन्हें अपने को देखने-दिखाने की आदत पड़ गई है, उनकी दृष्टि में दूसरे की सिर्फ़ तस्वीर आती है, भाव नहीं, यह दर्शन मुझे मालूम था। ज़िन्दा को मुर्दा और मुर्दा को ज़िन्दा समझना भ्रम भी है और ज्ञान भी; वाड़ियों में आदमी का पुतला देखकर हिरन और स्यार ज़िन्दा आदमी समझते हैं; उसी तरह ज्ञान होने पर गिलहरियाँ वदन पर चढ़ती हैं—आदमी उन्हें पत्थर जान पड़ता है। ऊपरवाले आदमी पगली को देखते हुए किस कोटि में जाते थे, भगवान् जानें।

एक दिन शहर में पल्टन का प्रदर्शन हो रहा था। पगली फ़ुटपाथ पर बैठी थी। मैं उसी बरांदे पर नंगे-बदन खड़ा सिपाहियों को देख रहा था। मेरी तरफ़ देख-देखकर कितने सिपाही मुस्कराए। मेरे बालों के बाद मुंह की तरफ़ देखकर लोग मिस-फ़ैशन कहते हैं। थिएटर, सिनेमा में यह सम्बोधन दशाधिक बार एक ही रोज़ सुनने को मिला है। रास्ते पर भी छेड़खानी होती है। मैं कुछ बोलता नहीं। क्योंकि सबसे अच्छा जवाब है बालों को कटा देना। पर ऐसा करूँ, तो मुझे दूसरों की समझ की खुराक न मिले। मैं सोचता हूँ, आवाज़ कसनेवालों पर एक हाथ रक्खूँ, तो छठी का दूध याद आ जाय, यह वे नहीं देखते। मैं समझ गया, सिपाही भी मिस-फ़ैशन से ख़ुश होकर हँस रहे हैं। लत तो है। मेरे ग्रीक-कट, पाँच फ़ुट साढ़े ग्यारह इंच लम्बे, ज़रूरत से ज़्यादा चौड़े और