चतुरी चमार
३३
"अच्छा, सुनिए, मैं बहुत ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहती। मेरे पास तीस गवाह है, लेडीज़ और जेंटल्मेन, अदालत में आपको मालूम हो जायगा, साढ़े नौ बजे रात को कल मैं अपनी तीन सखियों और दो मित्रों के साथ छतरमंज़िल की तरफ़ से आ रही थी, एक आदमी हम लोगों को देखकर भगा, हमें शक हुआ, हमारे साथ के मित्रों ने दौड़कर उसे पकड़ा उसकी कमर में सात सौ रुपये थे, कुर्ता नहीं पहने था, अब मालूम होता है—ख़ून के धब्बों की वजह से कुर्ता कहीं फेंक दिया था। वही ख़ूनी रहा होगा, मेरे मित्र बदमाश समझकर यहाँ ले आए, आपका नाम लेकर कहते थे कि दारोग़ाजी ने देखकर उसे पहचान लिया—वह चौक का भागा हुआ बदमाश महताबअली था। जान पड़ता है, आपने उसे छोड़ दिया; अच्छा, देखा जायगा।" कह कर लापरवाही से युवती उठी।
दारोग़ाजी सूख गए। घबराकर बोले—"यह सरासर झूठ है।"
चलती हुई युवती बोली—"आपके इस मुक़द्दमे की तरह अदालत में यह भी सच साबित हो सकता है। मगर हाँ, तब आपके सुबूत से यह ज़्यादा सही साबित होगा।" एड़ी के बल ज़रा लौटकर युवती बोली—"और बहुत-सी बातें हैं, आपने जिसे गिरफ़्तार किया है, आप जानते नहीं, यह कितनी बड़ी इज़्ज़त का आदमी है।"
युवती फिर बढ़ी, तो दारोग़ाजी ने बड़े विनय-पूर्ण शब्दों से बुलाया। युवती लौट पड़ी। पास आने पर पूछा—"ये आपके कोई होते हैं?"
"मेरे कोई होते, तो मेरे यहाँ आने की ज़रूरत क्या थी?"
इस अद्भुत स्त्री की ओर देखकर दारोग़ाजी ने क़ैदी को छोड़ देने के लिये कहा।
ताँगे पर बैठकर प्रतिमा ने राजीव से कहा—"पूरा प्लाट तुम्हारी चिट्ठी पर तैयार किया। तुमने लिखा भी ख़ूब था। सिर्फ़ महताब के लिये रिसर्च करते कुछ देर लगी थी, यानी जितनी देर इस ताँगेवाले से बातचीत करने में लगेगी। यह रिसर्च सच हो सकता है।"