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निराला



की हालत और की युवक के कमरे की चीज़ें लिखकर पंचों के दस्तख़त करा ताला लगा दिया गया।

युवक ने शून्य दृष्टि से एक बार थानेदार साहब को, फिर आकाश की ओर देखा।

हत्या का करण और कारण साथ लेकर थानेदार साहब थाने के लिये रवाना हुए।

थाने पहुँचे ही थे कि ताँगे से उतरकर इक्कीस-बाईस साल की एक सुन्दरी दारोग़ाजी की कुर्सी की ओर बढ़ती नज़र आई। केश-वेश अत्यन्त आधुनिक। चाल-ढाल संकोच से सोलहो आने रहित। दारोग़ा—जी को रास्ते छोड़कर थाने में ऐसा चमत्कार नहीं देख पड़ा। युवती सीधे दारोग़ाजी के सामने जा, उन्हीं से पूछने लगी—"मुझे थाने के इन्चार्ज दारोग़ाजी से सख़्त ज़रूरत है, क्या आप बतला सकेंगे-वह कहाँ मिल सकते हैं?"

"हाँ, फ़र्माइए।"

"अच्छा, आप हैं, पोशीदा बातचीत है।" युवती मुस्कराई।

थानेदार साहब ने एकांत कर लिया।

साग्रह देखते हुए दारोग़ाजी से युवती ने कहा—"आपने राजीव को गिरफ़्तार किया है, पर वह बेक़सूर है।"

"कोई सुबूत तो नहीं।"

"मैं गोमती-किनारे से टहलती हुई आ रही थी, वकील महेश्वरीप्रसाद राजीव को उधर जाकर देखने के लिये कह रहे थे, और खुद डरे हुए कमरे की तरफ़ जा रहे थे।"

कुछ सोचकर दारोग़ाजी ने कहा—"वह कल शाम को घर चले गये हैं, उनके नौकर से मालूम हुआ।"