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चतुरी चमार



२३

भी त्यों-त्यों तेज़ पीछा करते हैं। किससे कहे? भेंसाकुंड का बहुत-सा रास्ता बँगलों तथा बग़ीचों के कारण सुनसान निर्जन रहता है। धड़कते कलेजे से साधारण बस्ती के पास आकर साँस लेती है।

मन-ही-मन अपनी असमर्थता पर लीला को बड़ा क्षोभ हुथा। दुबलों को सब सताते हँ। पर आप ही शान्त हो जाना पड़ा, क्योंकि अपनी हद में वही अपना उपाय सोचनेवाली थी। माता से नहीं कहा कि कहीं वह रोक न दें; ख़र्च के लिये फिर क्‍या होगा?

एक दिन लौटते हुए उन्हीं में से एक को अश्लील बकते हुए सुना—जैसे सुनाकर बातें कही जा रही हों। वह तेज़ क़दम चलने लगी। वे भी उसी हिसाब से बढ़ते गए—तीन-ही-चार हाथ का फ़ासला था। ऐसे समय उनके साहस की ऐसी बात उसने सुनी, जो उसकी मर्यादा के प्रतिकूल थी। भय से एक प्रकार दौड़ने लगी। सामने एक हैट-कोट पहने देशी साहब आते हुए देख पड़े। लीला उनकी तरफ़ कुछ तेज़ बढ़ी। उन्हें देखकर बदमाश लौट गये। लीला उनके पास पहुँचकर हाँफती हुई बोली—"आज कई रोज़ से दो बदमाश मेरा पीछा करते हें। में तअल्लुक़दार रघुनाथसिंह की पत्नी को पढ़ाने जाती हूँ। लौटते समय राह पर मिल जाते हैं। मुझे ऐसी-ऐसी बातें आज कहीं—" कह-कर अपने को सँभालने लगी।

बिजली की रोशनी में बड़ी-बड़ी आँखों से आँसू गिरते हुए देखकर साहब क्रोध से रास्ते की ओर देखने लगे। बोलें—"वे लोग मुझे देख-कर भाग गये शायद। यह सामने मेरा ही बँगला है। आइए, आपको मोटर पर भेज दूँ।" "पर, फिर?—" साहब सोचते हुए चले, पीछे-पीछें लीला।

अहाते के भीतर बग़ीचे के पास साहब खड़े हो गए। बँगले के सामने की बिजली से लीला का दुबला सुन्दर कुछ लम्बा गोरा मुख,