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चतुरी चमार



१९


निर्मला—"क्यों, उसे कोई अड़चन तो है नहीं; फिर पढ़ाई क्यों बन्द कर रही है?"

श्यामा हँसने लगी। बोली—"वह कहती है, अब पढ़ना छोड़कर पढ़ाना पड़ेगा, इसकी तैयारी करनी है।"

सब हँसती हुई एक दूसरी की ओर देखने लगीं।

माधवी—"इसका मतलब?"

श्यामा हँसकर बोली—"उसे बड़ी चिन्ता है कि शिक्षार्थी आई॰ सी॰ एस्॰ है।"

"अच्छा", कई एकसाथ कह उठीं—"यह बात है!"

ललिता—"तो चलो, उसीके मकान से चला जाय। देखें, आपने अपनी तैयारी में कहाँ तक तरक़्क़ी की।"

सब जोत के मकान चलीं। सब आइसाबेला थाबर्न कॉलेज की छात्राएँ हैं। कोई तीसरे, कोई चौथे, कोई पाँचवें, कोई छठे साल में है। जोत का अभी तीसरा ही साल है।

घर पहुँचकर दंगल-का-दंगल जोत के कमरे में पैठा। वह जैसी जोत है, उसका पहनावा भी वैसा ही जगमगाता हुआ। उस समय वह आईने के सामने खड़ी मुस्करा रही थी। एकाएक संगनियों को देखकर लजा गई। बोली—"मुझे ज़रा देर हो गई।" वजह कोई न थी। सोचकर कुछ कह दे, हृदय और मस्तिष्क में उतनी जगह न थी—एक अजीब भाव में सारी देह भरी हुई थी, अतः देर के लिए दबनेवाले स्वर में भी उच्छ्वास उमड़ रहा था।

श्यामा बोली—"अब तो हर काम के लिए देर होगी। जल्दबाज़ी सिर्फ़ ख़ास विद्यार्थी को अवैतनिक पढ़ाने के वक़्त हो तो हो।"

सब हँसने लगीं। ललिता ने देखा—मेज़ पर एक खुला अँगरेज़ी लिफ़ाफ़ा पड़ा हुआ है। उठा लिया।

उठाते ही जोत तीर-सी ललिता पर टूटी। पर श्यामा ने पकड़