शान्ता-जी उसके पहले ही से वे दोनों यहां आते जाते रहे, उस दिन तो प्रकट रूप से यहाँ लाए गये थे। क्या इतना हो जाने पर भी आपको अन्दाज से मालूम न हुआ?
भूतनाथ--ठीक है, इसका शक तो मुझे और देवीसिंह को भी होता रहा ।
शान्ता का किस्सा भूतनाथ ने बड़े गौर के साथ ध्यान देकर सुना और तब देर तक आरजू-मिन्नत के साथ शान्ता माफी मांगता रहा और इसके बाद पुनः दोनों में बातचीत होने लगी।
शान्ता--अब तो आपको मालूम हो गया कि चम्पा यहाँ क्यों कर और किस लिए आई ?
भूतनाथ--हाँ, यह भेद तो खुल गया मगर इसका पता न लगा कि नानक और उसकी मां का यहाँ आना कैसे हुआ ?
शान्ता--सो मैं न कहूँगी, यह उसी से पूछ लेना।
भूतनाथ--(ताज्जुब से) सो क्यों ?
शान्ता--मैं उसके बारे में कुछ कहना ही नहीं चाहती !
भूतनाथ--आखिर इसका कोई सबब भी है ?
शान्ता--सबब यही है कि उसकी यहाँ कोई इज्जत नहीं है बल्कि वह बेकदरी की निगाह से देखी जाती है।
भूतनाथ--वह है भी इसी योग्य ! पहले तो मैं उसे प्यार करता था, मगर जब यह सुना कि उसी की बदौलत मैं जैपाल (नकली बलभद्र) का शिकार बन गया और एक भारी आफत में फंस गया, तब से मेरी तबीयत उससे खट्टी हो गई।
शान्ता--सो क्यों?
भूतनाथ--इसीलिए कि वह बेगम की गुप्त सहेली नन्हीं से गहरी मुहब्बत रखती है । और इसी सबब से वह कागज का मुट्ठा जो मैंने अपने फायदे के लिए तैयार किया था, गायब हो के जैपाल के हाथ लग गया और उससे मुझे नुकसान पहुँचा । इस बात का सबूत भी मैंने अपनी आँखों से देख लिया।
शान्ता--सो ठीक है, मैं भी दलीपशाह से यह बात सुन चुकी हूँ।
भूतनाथ--इसी से अब मैं उसे अपनी स्त्री नहीं बल्कि दुश्मन समझता हूँ । केवल नन्हीं से ही नहीं बल्कि कम्बख्त गौहर से भी वह दोस्ती रखती थी और वह दोस्ती पाक न थी । (लम्बी साँस लेकर) अफसोस ! इसी से उस खोटी का लड़का नानक भी खोटा ही निकला।
शान्ता--(मुस्कुराकर) तब आप उसके लिए इतना परेशान क्यों थे? क्योंकि यह बात सुनने बाद ही तो आपने उसे नकाबपोशों के स्थान पर देखा था !
भूतनाथ--वह परेशानी मेरी उसकी मुहब्बत के सबब से न थी बल्कि इस खयाल से थी कि कहीं वह मुझ पर कोई नई आफत लाने के लिए तो नकाबपोशों से नहीं आ
शान्ता--मिली।
1.चन्द्रकान्ता सन्तति, उन्नीसवाँ भाग, बारहवाँ बयान, देखिए नकाबपोश की बातचीत ।