पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/९२

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खबर मुझ अभागी के कानों तक पहुँचाने की कोशिश क्यों करते और ...

भूतनाथ--बस-बस, अब मुझ पर दया करो और इस ढंग की बातें छोड़ दो क्योंकि आज बड़े भाग्य से मेरे लिए यह खुशी का दिन नसीब हुआ है । इसे जली-कटी बातें सुनाकर पुनः कड़वा न करो और यह सुनाओ कि तुम इतने दिनों तक कहाँ छिपी हुई थी और अपनी लड़की कमला को किस तरह धोखा देकर चली गई कि आज तक वह तुमको मरी हुई ही समझती है ?

इस समय शान्ता का खूबसूरत चेहरा नकाब से ढका हुआ नहीं है। यद्यपि वह जमाने के हाथों सताई हुई तथा दुबली-पतली और उदास है और उसका तमाम बदन पीला पड़ गया है मगर फिर भी आज की यह खुशी उसके सुन्दर बादामी चेहरे पर रौनक पैदा कर रही है और इस बात की इजाजत नहीं देती कि कोई उसे ज्यादा उम्रवाली कह कर खूबसूरतों की पंक्ति में बैठने से रोके। हजार गई-गुजरी होने पर भी वह रामदेई (भूतनाथ की दूसरी स्त्री) से बहुत अच्छी मालूम पड़ती है और इस बात को भूतनाथ भी बड़े गौर से देख रहा है । भूतनाथ की आखिरी बात सुनकर शान्ता ने अपनी डबडबाई हुई बड़ी-बड़ी आँखों को आँचल से साफ किया और एक लम्बी साँस ले कर कहा-

शान्ता--मैं रणधीरसिंह जी के यहाँ से कभी न भागती अगर अपना मुंह किसी को दिखाने लायक समझती। मगर अफसोस, आपके भाई ने इस बात को खूब अच्छी तरह मशहूर किया कि आपके दुश्मन (अर्थात् आप) इस दुनिया से उठ गये । इसके सबूत में उन्होंने बहुत सी बातें पेश कीं, मगर मुझे विश्वास न हुआ, तथापि इस गम में मैं बीमार हो गई और दिन-दिन मेरी बीमारी बढ़ती ही गई। उसी जमाने में मेरी मौसेरी बहिन अर्थात् दलीपशाह की स्त्री मुझे देखने के लिए मेरे घर आई। मैंने अपने दिल का हाल और बीमारी का सबब उससे बयान किया और यह भी कहा कि जिस तरह मेरे पति ने सही-सलामत रह कर भी अपने को मरा मशहूर किया, उसी तरह मुझे तुम कहीं छिपा कर मरा हुआ मशहूर कर दो । अगर ऐसा हो जायगा तो मैं अपने पति को ढूंढ निकालने का उद्योग करूँगी। उन्होंने मेरी बात पसन्द कर ली और लोगों को यह कहकर कि मेरे यहाँ की आबोहवा अच्छी है वहाँ शान्ता को बहुत जल्द ही आराम हो जायगा, मुझे अपने यहाँ उठा ले जाने का बन्दोबस्त किया और रणधीरसिंहजी से इजाजत भी ले ली। मैं दो दिन तक अपनी लड़की कमला को नसीहत करती रही और इसके बाद उसे किशोरी के हवाले करके और अपनी छोटे दूध-पीते बच्चे को गोद में लेकर दलीपशाह के घर चली आई और धीरे-धीरे आराम होने लगी। थोड़े ही दिन बाद दलीपशाह के घर में उस भयानक आधी रात के समय आपका आना हुआ, मगर हाय, उस समय आपकी अवस्था पागलों की सी हो रही थी और आपने धोखे में पड़कर अपने प्यारे लड़के का, जिसे मैं अपने साथ ले गई थी, खून कर डाला।

इतना कहते-कहते शान्ता का जी भर आया और वह हिचकियाँ ले-लेकर रोने

1.दलीपशाह ने बीसवें भाग के तेरहवें बयान में इस घटना की तरफ भूतनाथ से इशारा किया।