करता है, परन्तु मेरी राय यही है कि तक जहाँ जल्द हो यहाँ से लौट चलना चाहिए।
महाराज--हम भी यही सोचते हैं। इन लोगों की जीवनी और आश्चर्य-भरी कहानी तो वर्षों तक सुनते ही रहेंगे। परन्तु इन्द्रजीत और आनन्दसिंह की शादी जहाँ तक हो सके जल्द कर देनी चाहिए, जिसमें और किसी तरह के विघ्न पड़ने का फिर डर न रहे।
जीतसिंह--जरूर ऐसा होना चाहिए, इसीलिए मैं चाहता हूँ कि यहाँ से जल्द चलिए । भरतसिंह वगैरह की कहानी वहाँ ही सुन लेंगे या शादी के बाद और लोगों को भी यहाँ ले आवेंगे, जिसमें वे लोग भी तिलिस्म और इस स्थान का आनन्द ले लें।
महाराज--अच्छी बात है, खैर अब यह बताओ कि कमलिनी और लाडिली के विषय में भी तुमने कुछ सोचा ?
जीतसिंह--उन दोनों के लिए जो कुछ आप विचार रहे हैं, वही मेरी भी राय है। उनकी भी शादी दोनों कुमारों के साथ ही कर देनी चाहिए ।
महाराज--है न यही राय
जीतसिंह--जी हाँ, मगर किशोरी और कामिनी की शादी के बाद । क्योंकि किशोरी एक राजा की लड़की है, इसलिए उसी की औलाद को गद्दी का हकदार होना चाहिए। यदि कमलिनी के साथ पहले शादी हो जायगी तो उसी का लड़का गद्दी का मालिक समझा जायगा, इसी से मैं चाहता हूँ कि पटराना किशोरी ही बनाई जाय।
महाराज--यह बात तो ठीक है, अतः ऐसा ही होगा और साथ ही इसके कमला की शादी भैरों के साथ और इन्दिरा की तारा के साथ कर दी जायगी।
जीतसिंह--जो मर्जी।
महाराज--अच्छा तो अब यही निश्चय रहा दलीपशाह और भरतसिंह की बीती यहाँ से चलने के बाद घर पर ही सुननी चाहिए ।
जीतसिंह--जी हाँ, सच तो यों है कि ऐसा करना ही पड़ेगा, क्योंकि इन लोगों की कहानी दारोगा और जयपाल इत्यादि कैदियों से घना सम्बन्ध रखती है, बल्कि यों कहना चाहिए कि इन्हीं लोगों के इजहार पर उन लोगों के मुकदमे का दारोमदार (हेस नेस) है और यही लोग उन कैदियों को लाजवाब करेंगे ।
महाराज--निःसन्देह ऐसा ही है, इसके अतिरिक्त उन कैदियों ने हम लोगों तथा हमारे सहायकों को बड़ा दुःख दिया है और दोनों कुमारों की शादी में भी बड़े-बड़े विघ्न डाले हैं । अतएव उन कम्बख्तों को कुमारों की शादी का जलसा भी दिखा देना चाहिए, जिसमें ये लोग भी अपनी आँखों से देख लें कि जिन बातों को वे बिगाड़ना चाहते थे, वे आज कैसी खूबी और खुशी के साथ हो रही हैं, इसके बाद उन लोगों को सजा दी जानी चाहिए। मगर अफसोस तो यह है कि मायारानी और माधवी जमानिया में ही मार डाली गई, नहीं तो वे दोनों भी देख लेतीं कि...
जीतसिंह--खैर, उनकी किस्मत में यही बदा था ,
महाराज--अच्छा, तो एक बात का और खयाल करना चाहिए।
जीतसिंह--आज्ञा?