तुम मरी समझते थे और हरनामसिंह तुम्हारा लड़का भी तुम्हारे पास बैठा हुआ दिखाई देता है। जो बहुत दिनों से गायब था और जिसके लिए बेचारी कमला बहुत परेशान थी, जब वह हरनामसिंह का हाल सुनेगी, तो बहुत ही प्रसन्न होगी।
भूतनाथ--निःसन्देह ऐसा ही है, परन्तु मैं हरनामसिंह के सामने भी एक संदूकड़ी देखकर डर रहा हूँ कहीं यह भी मेरे लिए कोई दुःख-दर्द सामान लेकर न आया हो ?
इन्द्रदेव--(हँस कर) भूतनाथ, अब तुम अपने दिल को व्यर्थ के खटकों में न डालो, जो कुछ होना था, सो हो गया । अब तुम पूरे तौर पर महाराज के ऐयार हो गये,किसी की मजाल नहीं कि तुम्हें किसी तरह की तकलीफ दे सके और महाराज भी तुम्हारे बारे में किसी तरह की शिकायत नहीं सुनना चाहते ! हरनामसिंह तो तुम्हारा लड़का ही है, वह तुम्हारे साथ बुराई क्यों करने लगा?
इसी समय महाराज सुरेन्द्र सिंह ने जीतसिंह की तरफ देखकर कुछ इशारा किया और जीतसिंह ने इन्द्रदेव से कहा, "भूतनाथ का मामला तो अब तय हो गया इसके बारे में महाराज किसी तरह की शिकायत सुनना नहीं चाहते। इसके अतिरिक्त भूतनाथ ने वायदा किया है कि अपनी जीवनी लिख कर महाराज के सामने पेश करेगा । अतः अब रह गये दलीपशाह, अर्जुन सिंह और भरतसिंह तथा कमला की मां । इन सभी पर जो कुछ मुसीबतें गुजरी हैं, उसे महाराज सुनना चाहते हैं। परन्तु अभी नहीं, क्योंकि विलम्ब बहुत हो गया। अब महाराज आराम करेंगे । अतः अब दरबार बर्खास्त करना चाहिए जिसमें ये लोग भी आपस में मिल-जुलकर अपने दिल की कुलफत निकाल लें, क्योंकि अब यहाँ तो किसी से मिलने में अथवा आपस का बर्ताव करने में परहेज न होना चाहिए।"
इन्द्रजीतसिंह-(हाथ जोड़ कर) जो आज्ञा !
दरबार बर्खास्त हुआ । इन्द्रदेव की इच्छानुसार महाराज आराम करने के लिए जीतसिंह को साथ लिए एक दूसरे कमरे में चले गये। इसके बाद और सब कोई उठे और और अपने-अपने ठिकाने पर, जैसाकि इन्द्रदेव ने इन्तजाम कर दिया था, चले गये मगर कई आदमी जो आराम नहीं करना चाहते थे, वे बँगले के बाहर निकलकर बगीचे की तरफ रवाना हुए।
5
एक सुन्दर पायों वाली मसहरी पर महाराज सुरेन्द्रसिंह लेटे हुए हैं। ऐयारों के सरताज जीतसिंह उसी मसहरी के पास फर्श पर बैठे तथा दाहिने हाथ से मसहरी पर ढासना लगाये धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं।
महाराज-- इन्द्रदेव का स्थान बहुत ही सुन्दर और रमणीक है, यहां से जाने को जी नहीं चाहता।
जीतसिंह--ठीक है, इस स्थान की तरह इन्द्रदेव का बर्ताव भी चित्त को प्रसन्न