पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८६

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दलीपशाह-महाराज अपनी आज्ञा के विरुद्ध चलते हुए हम लोगों को कदापि न देखेंगे, यह हमारी प्रतिज्ञा है।

महाराज-(अर्जुनसिंह तथा दलीपशाह के दूसरे साथी की तरफ देख कर) तुम गों की जुबान से भी हम ऐसा ही सुनना चाहते हैं ।

दलीपशाह का साथी—मेरी भी यही प्रतिज्ञा है और ईश्वर से प्रार्थना है कि मेरे दिल में दुश्मनी के बदले दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की करने वाली भूतनाथ की मुहब्बत पैदा करें।

महाराज-शाबाश ! शाबाश!

अर्जुनसिंह-कुंअरसाहब के सामने मैं जो कुछ प्रतिज्ञा कर चुका हूँ उसे महाराज सुन चुके होंगे। इस समय महाराज के सामने भी शपथ खाकर कहता हूँ कि स्वप्न में भी भूतनाथ के साथ दुश्मनी का ध्यान आने पर मैं अपने को दोषी समझूगा।

इतना कहकर अर्जुनसिंह ने वह तस्वीर जो उसके हाथ में थी, फाड़ डाली और टुकड़े-टुकड़े करके भूतनाथ के आगे फेंक दी और पुनः महाराज की तरफ देखकर कहा, "यदि आज्ञा हो और बेअदबी न समझी जाय तो हम लोग इसी समय भूतनाथ से गले मिलकर अपने उदास दिल को प्रसन्न कर लें।"

महाराज-यह तो हम स्वयं कहने वाले थे।

इतना सुनते ही दोनों दलीपशाह, अर्जुनसिंह और भूतनाथ आपस में गले मिले और इसके बाद महाराज का इशारा पाकर एक साथ बैठ गये ।

भूतनाथ-(दूसरे दलीपशाह और अर्जुनसिंह की तरफ देखकर) अब कृपा करके मेरे दिल का खटका मिटाओ और साफ-साफ बता दो कि तुम दोनों में से असल में अर्जुन- सिंह कौन हैं ? जब मैं दलीपशाह को बेहोश करके उस घाटी में ले गया था, तब तुम दोनों में से कौन महाशय वहाँ पहुँचकर दूसरे दलीपशाह बनने को तैयार हुए थे ?

दूसरा दलीपशाह—(हंसकर) उस दिन मैं ही तुम्हारे पास पहुंचा था। इत्ति- फाक से उस दिन मैं अर्जुनसिंह की सूरत बनकर बाहर घूम रहा था और जब तुम दलीपशाह को धोखा देकर ले चले तब मैंने छिपकर पीछा किया था। आज केवल धोखा देने को ही अर्जुनसिंह के रहते मैं अर्जुनसिंह बन कर दलीपशाह के साथ यहाँ आया हूँ।

इतना कहकर दूसरे दलीपशाह ने पास से गीला गमछा उठाया और अपने चेहरे का रंग पोंछ डाला जो उसने थोड़ी देर के लिए बनाया या लगाया था ।

चेहरा साफ होते ही उसकी सूरत ने राजा गोपालसिंह को चौंका दिया और वह यह कहते हुए उसके पास चले गये कि "क्या आप भरतसिंहजी हैं, जिनके विषय में इन्द्रजीतसिंह ने हमें नकाबपोश बनकर इतिला दी थी ?"2 और इसके जवाब में "जी हाँ" सुनकर वे भरतसिंह के गले से चिपट गये । इसके बाद उनका हाथ थामे हुए गोपाल- सिंह अपनी जगह पर चले आये और भरतसिंह को अपने पास बैठा कर महारज से

1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, बीसवाँ भाग, तेरहवां बयान ।

2. देखिए बीसवें भाग के आठवें बयान में कुमार की चिट्ठी ।