दयाराम को ढूंढ़ निकालने के लिए हमने कैसी-कैसी मेहनत की और हम लोगों को किस-किस तरह की तकलीफें उठानी पड़ीं, इसका बयान करना किस्से को व्यर्थ तूल देना और अपने मुंह मियां मिठू बनना है । महाराज के (आपके) नामी ऐयारों ने जैसे-अनूठे काम किये हैं उनके सामने हमारी ऐयारी कुछ भी नहीं है अतएव केवल इतना ही कहना काफी है कि हम लोगों ने अपनी हिम्मत से बढ़कर काम किया और हद दर्जे की तकलीफ उठाकर दयाराम जी को ढूंढ निकाला। केवल दयाराम को नहीं, बल्कि उनके साथ-ही-साथ 'राजसिंह' को भी गिरफ्तार करके हम लोग अपने ठिकाने पर ले आये, मगर अफसोस ! हम लोगों की सब मेहनत पर भूतनाथ ने पानी ही नहीं फेर दिया, बल्कि जन्म भर के लिए अपने माथे पर कलंक का टीका भी लगाया।
कैद की सख्ती उठाने के कारण दयाराम जी बहुत ही कमजोर और बीमार हो रहे थे, उनमें बात करने की भी ताकत न थी, इसलिए हम लोगों ने उसी समय उन्हें उठाकर इन्द्रदेव के पास ले जाना मुनासिब न समझा और दो-तीन दिन तक आराम देने की नीयत से अपने गुप्त स्थान पर, जहाँ हम लोग टिके हुए थे, ले गये। जहाँ तक हो सका, नरम बिछावन का इन्तजाम करके उस पर उन्हें लिटा दिया और उनके शरीर में ताकत लाने का बन्दोबस्त करने लगे। इस बात का भी निश्चय कर लिया कि जब तक इनकी तबीयत ठीक न हो जायगी, इनसे कैद किये जाने का सबब तक न पूछेगे ।
दयाराम जी के आराम का इन्तजाम करने के बाद हम लोगों ने अपने-अपने हर्के खोलकर उनकी चारपाई के नीचे रख दिए, कपड़े उतारे और बातचीत करने तथा दुश्मनी का सबब जानने के लिए राजसिंह को होश में लाये और उसकी मुश्के खोलकर बातचीत करने लगे क्योंकि उस समय इस बात का डर हम लोगों को कुछ भी न था कि वह हम पर हमला करेगा या हम लोगों का कुछ बिगाड़ सकेगा।
जिस मकान में हम लोग टिके हुए थे वह बहुत ही एकान्त और उजाड़ मुहल्ले में था। रात का समय था और मकान की तीसरी मंजिल पर हम लोग बैठे हुए थे, एक मद्धिम चिराग आले पर जल रहा था । दयाराम जी का पलंग हम लोगों के पीछे की तरफ था और राजसिंह सामने बैठा हुआ ताज्जुब के साथ हम लोगों का मुंह देख रहा था। उसी समय यकायक कई धमाके होने की आवाज आई और उसके कुछ ही देर बाद भूतनाथ तथा उसके दो साथियों को हम लोगों ने अपने सामने खड़ा देखा । सामना होने के साथ ही भूतनाथ ने मुझसे कहा, "क्यों वे शैतान के बच्चे, आखिर मेरी बात ठीक निकली न ! तू ही ने राजसिंह के साथ मेल करके हमारे साथ दुश्मनी पैदा की ! खैर, ले अपने किए का फल चख !"
इतना कहकर भूतनाथ ने मेरे ऊपर खंजर का वार किया जिसे बड़ी खूबी के साथ मेरे साथी ने रोका । मैं भी उठकर खड़ा हो गया और भूतनाथ के साथ लड़ाई होने लगी। भूतनाथ ने एक ही हाथ में राजसिंह का काम तमाम कर दिया और थोड़ी ही देर में मुझे भी खूब जख्मी किया यहाँ तक कि मैं जमीन पर गिर पड़ा और मेरे दोनों साथी भी बेकार हो गये। उस समय दयारामजी को, जो पड़े-पड़े सब तमाशा देख रहे थे जोश चढ़ आया और चारपाई पर से उठकर खाली हाथ भूतनाथ के सामने आ खड़े हुए, कुछ बोला