अकेला और बेफिक्र आदमी कहीं पर जन्म भर रहे और काम करे, इसका विश्वास लोगों को कम रहता है । खैर, जो कुछ हो मतलब यह है कि उन्होंने मुझे बड़ी इज्जत और प्यार के साथ अपने यहाँ रखा और मैंने भी थोड़े ही दिनों में ऐसे अनूठे काम कर दिखाए कि उन्हें ताज्जुब होता था। सच तो यह है कि उनके दुश्मनों की हिम्मत टूट गई और वे दुश्मनी की आग में आप ही जलने लगे।
कायदे की बात है कि जब किसी के हाथ से दो-चार काम अच्छे निकल जाते हैं और चारों तरफ उसकी तारीफ होने लगती है, तब वह अपने काम की तरफ से कुछ बेफिक्र हो जाता है । वही हाल मेरा भी हुआ।
आप जानते ही होंगे कि रणधीरसिंहजी का दयाराम नामक एक भतीजा था जिसे वह बहुत प्यार करते थे, और वही उनका वारिस होने वाला था। उसके मां-बाप लड़कपन ही में मर चुके थे, मगर चाचा की मुहब्बत के सबब उसे भी बाप के मरने का दुःख मालूम न हुआ। वह (दयाराम) उम्र में मुझसे कुछ छोटा था, मगर मेरे और उसके बीच में हद दर्जे की दोस्ती और मुहब्बत हो गई थी। जब हम दोनों आदमी घर पर मौजूद रहते तो बिना मिले जी नहीं मानता था। दयाराम का उठना-बैठना मेरे यहाँ ज्यादा होता था, अक्सर रात को मेरे यहाँ खा-पीकर सो जाता था, और उसके घर वाले भी इसमें किसी तरह का रंज नहीं मानते थे।
जो मकान मुझे रहने के लिए मिला था, वह निहायत उम्दा और शानदार था।उसके पीछे की तरफ एक छोटा-सा नजरबाग था, जो दयाराम के शौक की बदौलत हरदम हरा-भरा, गुजान और सुहावना बना रहता था। प्रायः संध्या के समय हम दोनों दोस्त उसी बाग में बैठकर भांग-बूटी छानते और संध्योपासन से निवृत्त हो बहुत रात गये तक गप-शप किया करते।
जेठ का महीना था और गर्मी हद दर्जे की पड़ रही थी। पहर रात बीत जाने पर हम दोनों दोस्त उसी नजरबाग में दो चारपाइयों के ऊपर लेटे आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहे थे। मेरा खूबसूरत और प्यारा कुत्ता मेरे पायताने की तरफ एक पत्थर की चौकी पर बैठा हुआ। बात करते-करते हम दोनों को नींद आ गई।
आधी रात से कुछ ज्यादा बीती होगी, जब मेरी आँख कुत्ते के भौंकने की आवाज से खुल गई। मैंने उस पर कुछ विशेष ध्यान न दिया और करवट बदलकर फिर आँखें बन्द कर लीं, क्योंकि वह कुत्ता मुझसे बहुत दूर और नजरबाग के पिछले हिस्से की तरफ था, मगर कुछ ही देर बाद वह मेरी चारपाई के पास आकर भौंकने लगा, और पुनः मेरी आंख खुल गई । मैंने कुत्ते को अपने सामने बेचैनी की हालत में देखा, उस समय वह जुबान निकालते हुए जोर-जोर से हांफ रहा, और दोनों अगले पैरों से जमीन खोद रहा था।
मैं अपने कुत्ते की आदतों को खूब जानता और समझता था, पतः उसकी ऐसी अवस्था देखकर मेरे दिल में खुटका हुआ और मैं घबराकर उठ बैठा। अपने मित्र भी उठाकर होशियार कर देने की नीयत से मैंने उसकी चारपाई की तरफ देखा, मगर चारपाई खाली पाकर मैं बेचैनी के साथ चारों तरफ देखने लगा और उठकर चारपाई के नीचे खड़े होने के साथ ही मैंने अपने सिरहाने के नीचे से खंजर निकाल लिया। उस समय मेरा