हैं या इसके पहले इन लोगों में क्या-क्या बातें हो चुकी हैं, मगर इस समय तो ये सब लोग कई ऐसे मामलों पर बातचीत कर रहे हैं जिनका पूरा होना बहुत जरूरी समझा जाता है।
बात करते-करते एक दफे कुछ रुक कर महाराज सुरेन्द्रसिंह ने जीतसिंह से कहा,"इस राय में गोपाल सिंह का भी शरीक होना उचित जान पड़ता है, किसी को भेजकर उन्हें बुलाना चाहिए।"
"जो आज्ञा" कहकर जीतसिंह उठे और कमरे के बाहर जाकर राजा गोपालसिंह को बुलाने के लिए चोबदार को हुक्म देने के बाद पुनः अपने ठिकाने बैठ कर बातचीत करने लगे।
जीतसिंह–इसमें तो कोई शक नहीं कि भूतनाथ आदमी चालाक और पूरे दर्जेबका ऐयार है मगर उसके दुश्मन लोग उस पर बेतरह टूट पड़े हैं और चाहते हैं कि जिस तरह बने उसे बर्बाद कर दें और इसीलिए उसके पुराने ऐबों को उधेड़ कर तरह-तरह की तकलीफ दे रहे हैं।
सुरेन्द्रसिंह--ठीक है, मगर हमारे साथ भूतनाथ ने सिवाय एक दफे चोरी करने के और कौन-सी बुराई की है जिसके लिए उसे हम सजा दें या बुरा कहें ?
जीतसिंह-कुछ भी नहीं, और वह चोरी भी उसने किसी बुरी नीयत से नहीं की थी। इस विषय में नानक ने जो कुछ कहा था, महाराज सुन ही चुके हैं
सुरेन्द्रसिंह-हाँ मुझे याद है, और उसने हम लोगों पर अहसान भी बहुत किये हैं बल्कि यों कहना चाहिए कि उसी की बदौलत कमलिनी, किशोरी, लक्ष्मीदेवी और इन्दिरा वगैरह की जानें बची और गोपालसिंह को भी उसकी मदद से बहुत फायदा पहुंचा है। इन्हीं सब बातों को सोच के तो देवीसिंह ने उसे अपना दोस्त बना लिया है, मगर साथ ही इसके इस बात भी समझ रखना चाहिए कि जब तक भूतनाथ का मामला तय नहीं हो जायगा तब तक लोग उसके ऐबों को खोद-खोद कर निकाला ही करेंगे और तरह-तरह की बातें गढ़ते रहेंगे।
एक नकाबपोश-सो तो ठीक ही है, मगर सच पूछिए तो भूतनाथ का मुकदमा ही कसा और मामला ही क्या ? मुकदमा तो असल में नकली बलभद्रसिंह का है जिसने इतना बड़ा कसूर करने पर भी भूतनाथ पर इल्जाम लगाया है। उस पीतल वाली सन्दूकड़ी से तो हम लोगों को कोई मतलब ही नहीं, हाँ, बाकी रह गया चिट्ठियों वाला मुट्ठा जिसके पढ़ने से भूतनाथ लक्ष्मीदेवी का कसूरवार मालूम होता है, सो उसका।जवाब भूतनाथ काफी तौर पर दे देगा और साबित कर देगा कि वे चिट्ठियां उसके हाथ की लिखी हुई होने पर भी वह कसूरवार नहीं है और वास्तव में वह बलभद्रसिंह का दोस्त है, दुश्मन नहीं।
सुरेन्द्रसिंह-(लम्बी सांस लेकर) ओफ-ओह, इस थोड़े से जमाने में कैसे-कैसे उलटफेर हो गए ! बेचारे गोपालसिंह के साथ कैसी-कैसी धोखेबाजी की गई!इन बातों पर जब हमारा ध्यान जाता है तो मारे क्रोध के बुरा हाल हो जाता है।
जीतसिंह-ठीक है, मगर खैर अब इन बातों पर क्रोध करने की जगह नहीं रही