अपना मित्र समझ लिया है और फिर उसी निगाह से देखने लगा हूँ, जिस निगाह से पहले देखता था । परन्तु इतना मैं जरूर कहूँगा कि भूतनाथ ही एक ऐसा आदमी है जो दुनिया में नेकचलनी और बदबलनी के नतीजे को दिखाने के लिए नमूना बन रहा है। आज यह अपने भेदों को प्रकट होते देख डरता है और चाहता है कि हमारे भेद छिपे के छिपे रह जायें, मगर यह इसकी भूल है, क्योंकि किसी के ऐब छिपे नहीं रहते। सब नहीं तो बहुत कुछ दोनों कुमारों को मालूम हो ही चुके हैं और महाराज भी जान गए हैं, ऐसी अवस्था में इसे अपना किस्सा पूरा-पूरा बयान करके दुनिया में एक नजीर छोड़ देनी चाहिए और साथ ही इसके (भूतनाथ की तरफ देखते हुए) अपने दिल के बोझ को भी हलका कर देना चाहिए। भूतनाथ, तुम्हारे दो-चार भेद ऐसे हैं जिन्हें सुनकर लोगों की आँखें खुल जायेंगी, और लोग समझेंगे, कि हाँ, आदमी ऐसे-ऐसे काम भी कर गुजरते हैं और उनका नतीजा ऐसा होता है, मगर यह तो कुछ तुम्हारे ही ऐसे बुद्धिमान और अनूठे ऐयार का काम है, कि इतना करने पर भी आज तुम भले-चंगे ही नहीं दिखाई देते हो, बल्कि नेकनामी के साथ महाराज के ऐयार कहलाने की इज्जत भी पा चुके हो। मैं फिर कहता हूँ कि किसी बुरी नीयत से इन बातों का जिक्र मैं नहीं करता, बल्कि तुम्हारे दिल का खुटका दूर करने के साथ-ही-साथ, जिसके नाम से तुम डरते हो, उन्हें तुम्हारा दोस्त बनाना चाहता हूं, अतः तुम्हें बे-खौफ अपना हाल बयान कर देना चाहिए।"
भूतनाथ–ठीक है, मगर क्या करूँ, मेरी जुबान नहीं खुलती, मैंने ऐसे-ऐसे बुरे काम किए हैं कि जिन्हें याद करके आज मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, और आत्महत्या करने की इच्छा होती है, मगर नहीं, मैं बदनामी के साथ दुनिया से उठ जाता पसन्द नहीं करता, अतएव जहाँ तक हो सकेगा, एक दफे नेकनामी अवश्य पैदा करूंगा।
इन्द्रजीतसिंह-नेकनामी पैदा करने का ध्यान जहाँ तक बना रहे अच्छा ही है,परन्तु मैं समझता हूं कि तुम नेकनामी उसी दिन पैदा कर चुके जिस दिन हमारे महाराज ने तुम्हें अपना ऐयार बनाया, इसलिए कि तुमने इधर बहुत ही अच्छे काम किये हैं,और वे सब ऐसे थे कि जिन्हें अच्छे-से-अच्छा ऐयार भी कदाचित् नहीं कर सकता था।चाहे तुमने पहले कैसी ही बुराई और कैसे ही खोटे काम क्यों न किये हों, मगर आज हम लोग तुम्हारे देनदार हो रहे हैं, तुम्हारे अहसान के बोझ से दबे हुए हैं, और समझते हैं कि तुम अपने दुष्कर्मों का प्रायश्वित्त कर चुके हो ।
भूतनाथ-आप जो कुछ कहते हैं, वह आपका बड़प्पन है, परन्तु जो मैंने कुछ कुकर्म किए हैं, मैं समझता हूँ कि उनका कोई प्रायश्चित्त ही नहीं है, तथापि अब तो मैं महाराज की शरण में आ ही चुका हूँ, और महाराज ने भी मेरी बुराइयों पर ध्यान न देकर मुझे अपना दासानुदास स्वीकार कर लिया है, इससे मेरी आत्मा सन्तुष्ट है और मैं अपने को दुनिया में मुंह दिखाने योग्य समझने लगा हूँ। मैं यह भी समझता हूँ कि आप जो कुछ आज्ञा कर रहे हैं, यह वास्तव में महाराज की आज्ञा है, जिसे मैं कदापि उल्लंघन नहीं कर सकता, अतः मैं आज अपनी अद्भुत जीवनी सुनाने के लिए तैयार हूँ, परन्तु
इतना कहकर भूतनाथ ने एक लम्बी साँस ली, और महाराज सुरेन्द्रसिंह की